अपना अपना इतिहास


इतिहास शब्द भी अब ऐतिहासिक हो चला। माने इसका भी मॉडर्नाइजेशन हो गया। कक्षा 10 के विद्यार्थी से पूछिए पता चलेगा कि इतिहास तीन टाइप के हुआ करते हैं क्रमशः प्राचीन इतिहास, मध्यकालीन इतिहास और आधुनिक इतिहास। हड़प्पा की
खुदाई से प्राचीन इतिहास , मुगलों वाला मध्यकालीन इतिहास और कांग्रेस पार्टी के गठन से भारत की स्वतंत्रता तक आधुनिक इतिहास। इससे आगे पीछे कुछ भी न पूछें अन्यथा विद्यार्थी आपको बकलोल समझ लेगा।

इतना माने मतलब समझाने के पीछे उद्देश्य यही है कि आप समझ जाएँ कि इतिहास की समझ इसपर निर्भर करती है कि – “आपने किताब कौन सी वाली उठायी है”?

जमाना बड़ा विचित्र सा हो रहा है – लोग एक दूसरे के इतिहास के पीछे पड़े हैं, अपना इतिहास पूछो तो बमुश्किल दादा तक का नाम बता पाएंगे। फेसबूकिया ज्ञान ओरिजिनल ज्ञान पे भारी हो गया है। एक अच्छा सा टेम्पलेट बना लो, चाहे जो मर्ज़ी लिख दो और वितरण कर दो। जितना
ज्यादा वितरण उतनी ज्यादा सत्य की पुष्टि। फलाना पोस्ट – शेयर्ड बाई सो मेनी पीपल, सच ही होगा पक्का।

इतनी तो हमारी संविधान की धाराएं न बदली होंगी जितनी इतिहास बदल गयी है। देखने का फरक है बंधु – जैसे प्रभु श्री राम जी हमारे लिए हीरो और लंका के लिए विलेन हैं। आदमी वही है देखने वाले का भोगौलिक लोकेशन इतर है। तो इसे समझने की कला चाहिए जो बमुश्किल चंद लोगों के पास है। वर्तमान परिदृश्य में देख रहा हूँ कि जो वास्तविक इतिहासकार है वो चुप है और मॉडर्न इतिहासकार (वही फेसबूकिया वाला) टीवी पर परिचर्चा में भाग ले रहा है। अब आप ही सोचिये जो व्यक्ति कॉमर्स में ग्रेजुएट है, किसी सेठ जी की कम्पनी में 15 साल से मुंशी का काम कर रहा है, उसे कैसे समझ होगी कि रज़िया सुल्तान को गद्दी से हटाने के लिए किसने साजिश रची?

तो ये ज्ञान जबरदस्ती वाला है – घुट्टी पिला के ठूसी हुयी। इतना तो अम्मा भोजन करने में मिहनत न करती होगी जितनी ये फ़र्ज़ी प्रोपोगैंडा फ़ैलाने वाले करते हैं। इतिहास समझने के लिए स्टैमिना चाहिए और स्टैमिना आज कम ही लोगों के पास है। इतिहास अच्छा भी समेटे है और बुरा भी, जीत भी है और पराक्रम भी। पृथ्वीराज भी हैं और जयचंद भी। अब पृथ्वीराज के पराक्रम को सच माने या फिर जयचंद के गोरी गठबंधन को? सब सत्य ही है – जयचंद के वंशज को थोड़े अच्छा लगता होगा जब उन्हें गद्दार कहा जाता होगा। भावनाएं आहत हो जाती होंगी, अश्रु धार बहती होगी। वास्तविकता है कि इन सब बातों को दिल पे नहीं लेना चाहिए और इतिहास को इतिहास ही रहने देना चाहिए। इतिहास सिर्फ इसलिए इतिहास है क्यूंकि हमने आँखों से उसे घटते हुए नहीं देखा, देखा होता तो वह वर्तमान हो जाता।

इसीलिए इन पार्टीदारों के झांसे में न आते हुए अपनी अकल लगाएं। जो इतिहास आज माड़धाड़ करा रहा है, संभव है कि यही इतिहास अगले चुनाव में गठबंधन करवा दे। पार्टी को सीट मिलेगी हमें क्या मिलेगा – बाबाजी के दालान का फूल??

व्यंग्य

हम छोटे लोग हैं भैया – हम 2 जीबी डाटा से ही खुश हो जाते हैं।
दोस्तों के साथ चायमूढ़ी पर चर्चा कर के ही परमसुख की प्राप्ति हो जाती है। हमको इतिहास समझा के का फायदा ?

दसवीं के बच्चे से फिर मैंने पूछा कि इतिहास पेपर की तैयारी कैसी है ? कहता है – इंटरेस्ट नहीं है सब्जेक्ट में, नींद आती है पढ़ते हैं तो। सब रट्टा मार लिए हैं।
एगो कॉमन ढर्रा बनाये है जो किसी का जीवनी पूछेगा त इहे लिख देंगे – ”

… एक प्रतापी शाषक थे, उनकी ख्याति दूर दूर तक फैली थी। इनकी प्रजा इनसे संतुष्ट थी। पडोसी राज्यों से भी मित्रता किये हुए थे। इन्होने कई विवाह किये थे उनमे से एक महारानी की सेविका भी थी जिससे उनके प्रेम सम्बन्ध थे। इनकी कई संतानें थी। इनकी मौत के बाद इनके बड़े पुत्र ने गद्दी संभाली। ”

परीक्षा के 6 महीने बाद बच्चा फिर मिला। मैंने पूछा किसकी जीवनी पर प्रश्न आये थे , उसने कहा आसान था – स्वामी विवेकानंद; उसी ढर्रे पे लिख आया।

देखिये ज्ञान अभाव में चरित्र चित्रण करने के बजाय चरित्र खराब कर आया बच्चा। यही हाल है देश की अभी। संभल जाइये अब भी समय है।

– विक्रम आदित्य सिंह
जमशेदपुर, झारखण्ड

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