बेलपत्र पूजनीय तो है ही साथ में ही है इसके कई लाभ, जानें विस्तार से

Belpatra: बेल की पत्तियों का भारतीय संस्कृति में विशेष महत्व रहा है। बेल की पत्तियां अधिकांश तौर पर तीन, पांच या सात के समूह में पाई जाती हैं। कहते हैं तीन पत्तियों का समूह भगवान शिव के त्रिनेत्र या त्रिशूल का भान कराती हैं। इन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश के नाम से भी बुलाया जाता है। स्कंद पुराण की माने तो बेल की उत्पत्ति मंदार पर्वत पर माता पार्वती के पसीने के कुछ बूंदों के गिरने के कारण हुई थी। इसे हिन्दू धर्म में सकारात्मक ऊर्जा का स्त्रोत माना जाता है। कहते हैं इसके प्रयोग से आसपास की नकारात्मक ऊर्जाएं दूर होती हैं।

बेलपत्र के औषधीय लाभ

बेल अपने में एक अनूठा पौधा है और इसके कई औषधीय लाभ भी हैं। जानकार बताते हैं कि बेल के फल में विटामिन A, C, कैल्शियम, पोटेशियम, राइबोफ्लेविन, फाइबर और साथ ही बी6 और बी12 भी भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। आपको तो पता ही है कि ये विटामिन और खनीज हमारे शरीर के कितने उपयोगी हैं।

कहते हैं बेलपत्र हमारे शरीर के तीनों दोषों यथा-वात, पित्त और कफ को संतुलित करता है। इसके रोजाना सेवन से उच्च रक्तचाप, हृदय से जुड़ी समस्याएं और कोलेस्ट्रॉल भी नियंत्रित रहता है। आयुर्वेद के अनुसार कच्चे बेल को हल्दी और घी में मिलाकर लगाने से टूटी हड्डियों में भी काफी आराम मिलता है।

बेल के पेड़ की छाल हो या जड़, फल हो या पत्ते सभी का कुछ न कुछ इस्तेमाल जरूर है। शायद इसलिए ही इसे भारतीय संस्कृति में इतना महत्व दिया गया है। इस पवित्र वृक्ष की मदद से अस्थमा, पीलिया, एनीमिया, मसूड़ों से खून आना जैसी बीमारियों में भी राहत मिलती है। इसके फल में मौजूद टैनिन हैजा और डायरिया के इलाज में लाभकारी सिद्ध होते हैं। इनमें एंटीफंगल और एंटीवायरल गुण भी देखें गए हैं। शरीर के संक्रमणकारी बीमारियों में भी काफी मददगार होते है यह पेड़। इतना ही नहीं बेलपत्र से निकाले गए तेल से श्वास संबंधी कई सारी विकारों को ठीक किया जा सकता है। बेलपत्र में लैक्सेटिव की मात्रा अधिक होने के कारण इससे रक्त की शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में सहायता मिलती है।

बेलपत्र का धार्मिक महत्व

हिन्दू पौराणिक ग्रंथों की माने तो बेलपत्र से ही पूरे ब्रह्मांड का निर्माण हुआ है। शायद इसके गुणों के कारण ही यह भगवान शिव को इतना प्रिय है। स्कंदमहापुराण की कथा के अनुसार माता पार्वती के पसीन से सृजित हुआ है यह वृक्ष। इसलिए इसके हर एक भाग में माता पार्वती के सभी रूप का वास होता होता है। इसका धार्मिक महत्व कुछ इस तरह का है कि इसकी पूजा से जहां सत्य का ज्ञान कराती है वहीं इसके छूने मात्र से पाप नष्ट हो जाते हैं।

स्थित जो भी हो, हिन्दू धर्म में उन सभी प्राकृतिक स्त्रोतों को पूजनीय बताया गया है, जिनसे मनुष्य तथा अन्य जीव जंतु को लाभ मिलता है। इसलिए तो यहां आपको प्रकृति पूजा बहुतायत में देखने को मिलती हैं।

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