हिन्दी वर्णमाला का है वैज्ञानिक आधार

टीम हिन्दी

अधिकांश व्यक्ति इस कथन से परिचित हैं कि देवनागरी लिपि सर्वश्रेष्ठ और सर्वाधिक वैज्ञानिक लिपि है। इसमे कुल 52 अक्षर हैं , जिसमें 14 स्वर और 38 व्यंजन हैं। अक्षरों की क्रम व्यवस्था (विन्यास) भी बहुत ही वैज्ञानिक है। स्वर-व्यंजन , कोमल-कठोर, अल्पप्राण-महाप्राण , अनुनासिक्य-अन्तस्थ-उष्म इत्यादि वर्गीकरण भी वैज्ञानिक हैं।

यह एक ध्वन्यात्मक लिपि है अर्थात इसमें जैसे बोला जाता है, वैसे ही लिखा जाता है। दूसरे शब्दों में इसके प्रत्येक अक्षर का जो नाम है वही उसका उच्चारण है। यथा ‘क’ का नाम व उच्चारण भी क है इत्यादि, जबकि अन्य लिपियों में ऐसा नहीं है। रोमन लिपि में अक्षर ‘H’ का नाम एच है, परंतु उच्चारण ‘ह’ होता है।

‘W’ का नाम डब्ल्यू है, परंतु उच्चारण ‘व’ होता है ‘G’ का नाम तो ‘जी’ है परंतु इसका उपयोग प्रायः ‘ग’ के लिए होता है। केवल ‘O’ के अतिरिक्त सभी अक्षरों का उच्चारण उनके नाम से पृथक है, यहां तक कि कई शब्दों में O का उच्चारण भी ‘ओ’ नहीं होता है, जैसे colour (कलर)। ग्रीक लिपि में अ उच्चारण के लिए काम लिया जाने वाला अक्षर अल्फा अ के लिए, ब के लिए बीटा , ग के लिए गामा इत्यादि अक्षर हैं। ग्रीक लिपि के अन्य अक्षरों के नाम थीटा, पाई, सिगमा, ऐप्सिलोन, लेम्डा , म्यू , फाई, साई, ओमेगा इत्यादि हैं।

एक मत के अनुसार देवनगर (काशी) में प्रचलन के कारण इसका नाम देवनागरी पड़ा। इस लिपि में विश्व की समस्त भाषाओं की ध्वनिओं को व्यक्त करने की क्षमता है. यही वह लिपि है जिसमे संसार की किसी भी भाषा को रूपान्तरित किया जा सकता है. भारत तथा एशिया की अनेक लिपियों के संकेत देवनागरी से अलग हैं ( उर्दू को छोडकर), पर उच्चारण व वर्ण-क्रम आदि देवनागरी के ही समान है । इसलिए इन लिपियों को परस्पर आसानी से लिप्यन्तरित किया जा सकता है। यह बायें से दायें की तरफ़ लिखी जाती है। देवनागरी लेखन की दृष्टि से सरल , सौन्दर्य की दृष्टि से सुन्दर और वाचन की दृष्टि से सुपाठ्य है।

इसकी वैज्ञानिकता आश्चर्यचकित कर देती है । यहां किसी भी अक्षर का एक ही उच्चारण है और साथ ही एक उच्चारण के लिए एक ही अक्षर है। अर्थात इस लिपि में ऐसी अव्यवस्था नहीं है कि किसी अक्षर का उच्चारण एक शब्द में तो एक प्रकार का हो और दूसरे शब्द में दूसरे प्रकार का हो। इसी प्रकार ऐसी अव्यवस्था भी नहीं है कि किसी उच्चारण के लिए एक शब्द में तो एक अक्षर का प्रयोग का हो और दूसरे शब्द में दूसरे प्रकार का हो। यह अव्यवस्था भी नहीं है कि किसी उच्चारण के लिए एक शब्द में तो एक अक्षर का प्रयोग किया जाए, जबकि उसी उच्चारण के लिए दूसरे शब्द में किसी अन्य अक्षर का प्रयोग कर लिया जाए अथवा एक ही शब्द में एक ही उच्चारण के लिए भिन्न-भिन्न अक्षरों का प्रयोग कर लिया जाए। अक्षरों के एक समूह (शब्द) का सदैव एक ही उच्चारण होगा। उदाहरण के लिए रोमन लिपि में ‘व’ के उच्चारण के लिए कभी ‘V’ का और कभी ‘W’ का अक्षरों का प्रयोग किया जाता है। यहां तक कि एक ही शब्द ‘Vowel’ (वोवेल) में प्रथम बार ‘व’ के लिए ‘V’ का तथा द्वितीय बार ‘ब’ के लिए ‘W’ का प्रयोग किया जाता है। अक्षर ‘C’ कभी ‘क’ के लिए Camel (कैमल) तो कभी ‘स’ Call (सैल) के लिए प्रयुक्त होता है। सामान्यतः ‘Ch’ का उपयोग ‘च’ के लिए होता है, किंतु Chemistry (कैमेस्ट्री), Chlorine (क्लोरीन) जैसे अनेक शब्दों में ‘Ch’ का प्रयोग ‘क’ के लिए हो जाता है। रोमन लिपि में Read भी रैड है और Red भी रैड है। Right भी राइट है तथा Write भी राइट है। रोमन लिपि में ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं।

देवनागरी लिपि में प्रत्येक अक्षर का उच्चारण होता है, कोई अक्षर उच्चारण विहीन नहीं होता है। रोमन लिपि में Light Bright में ‘Gh’ तथा Know व Knife में ‘K’ मूक अक्षर हैं। देवनागरी लिपि की ये चारों विशेषताएं तो वास्तव में सबसे गौण अर्थात सबसे कम महत्त्वपूर्ण विशेषताएं हैं। इसकी वास्तविक और मुख्य विशेषताएं तो बहुत ही अधिक वैज्ञानिक विशेषताएं हैं। वैसे देवनागरी लिपि की वैज्ञानिक विशेषताएं इतनी विस्तृत हैं कि उन्हें कुछ पंक्तियों में अथवा दो-चार पृष्ठों में व्यक्त करना एक दुष्कर कार्य है तथापि अत्यंत ही संक्षेप में उनका वर्णन निम्नानुसार किया जा सकता है।

इसकी अगली महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक विशेषता यह है कि इसके प्रत्येक वर्ण की ध्वनि एक सुनिश्चित ध्वनि है। ध्वनि भौतिकी (sound physics) की दृष्टि से इसके प्रत्येक वर्ण की तरङ्ग की आवृत्ति व अंतराल (frequency & pitch) लगभग निश्चित होता है, क्योंकि वह उच्चारण में उपयोग किए जाने वाले अङ्गों, उपयोग की नई श्वास की मात्रा, उच्चारण में लगने वाली अवधि तथा अन्य प्रयत्नों पर निर्भर होती है, जिस पर ध्वनि भौतिकी के वैज्ञानिकों द्वारा विस्तृत शोध किया जाना चाहिए। अपनी इस विशेषता के कारण ही यह श्रव्य सङ्गणक (audio computer) एवं श्रव्य मुद्रक सङ्गणक (audio printer computers) अर्थात केवल सुनकर मुद्रण करने वाले कम्प्यूटर्स के लिए श्रेष्ठ लिपि है। सूचना प्रौद्योगिकी (Infromation Technology) के विशेषज्ञों से इस क्षेत्र में विशेष प्रयत्न किए जाने की अपेक्षा है।

भारतीय मूल की लिपियों के अतिरिक्त अन्य लिपियों में अक्षर तो होते हैं, किंतु वर्ण नहीं होते हैं। केवल देवनागरी लिपि तथा भारतीय मूल की कुछ अन्य लिपियों में वर्ण की अवधारणा है। वर्ण की गहन व्याख्या एक कठिन तथा दीर्घ समय साध्य कार्य है, अतः अधिक विस्तार में न जाते हुए संक्षेप में इतना लिखना पर्याप्त होगा कि एक वर्ण एक अक्षर से छोटी इकाई है। वर्ण वस्तुतः एक मूल ध्वनि है, एक आधार ध्वनि है। एक अक्षर में एक, दो, तीन या इससे भी अधिक वर्ण हो सकते हैं, किंतु एक वर्ण में एक से अधिक अक्षर नहीं हो सकते हैं। अंगे्रजी (रोमन लिपि) के अल्फाबेट्स में ‘B’ के नाम में ‘ब्’ तथा ‘ई’, ‘C’ के नाम में ‘स्’ तथा ‘ई’ दो-दो वर्ण हैं, जबकि ‘L’ के नाम में ‘ऐ’ ‘ल्’ एवं ‘अ’ तीन वर्ण हैं इत्यादि। जबकि देवनागरी लिपि की वर्णमाला का प्रत्येक अक्षर केवल एक वर्ण को प्रदर्शित करता है।

देवनागरी लिपि की एक अन्य विशेषता यह भी है कि इसमें व्यंजनों पर केवल मात्रा लगाने मात्र से उनका उच्चारण परिवर्तित हो जाता है, कोई अन्य अक्षर नहीं लिखना पड़ता है। साथ ही प्रत्येक मात्रा प्रत्येक व्यंजन के साथ सभी समय एक ही प्रकार का परिवर्तन हो जाता है, कोई अन्य अक्षर नहीं लिखना पड़ता है। प्रत्येक मात्रा प्रत्येक व्यंजन के साथ सभी समय एक ही प्रकार का परिवर्तन करती है, भिन्न-भिन्न प्रकार के परिवर्तन नहीं होते हैं। जैसे अंगे्रजी में Put तो पुट होता है, परंतु But बट और Cut कट ही रह जाता है, अर्थात But और Cut में ‘U’ प्रभावहीन हो जाता है। Kite काइट होता है, किंतु Sit सिट होता है। देवनागरी लिपि में ऐसा भ्रम कभी भी नहीं होता है।

Hindi vanmala ka hai vegyanic adhar

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