हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भले ही खुद गुजरातीभाषी थे, लेकिन हिंदी को लेकर उनका योगदान अतुलनीय रहा है। जब दक्षिण अफ्रीका से गांधी भारत आए तो उनका पहला आंदोलन चंपारण से शुरू हुआ। संयोग से यह चंपारण आंदोलन का शताब्दी वर्ष भी है। गांधीजी जब चंपारण गए तो सबसे बड़ी दिक्कत उन्हें भाषा को लेकर आई। इस मामले में कुछ स्थानीय साथियों ने उनकी मदद की, लेकिन गांधीजी ने खुद बहुत जतन से हिंदी सीखी।
स्वतंत्रता आंदोलन में आने से पहले गांधीजी ने पूरे देश का भ्रमण किया और पाया कि हिंदी ही एकमात्र ऐसी भाषा है, जो पूरे देश को जोड़ सकती है। इसलिए उन्होंने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की बात कही। आजादी के बाद जब देश का बंटवारा हुआ तो किसी विदेशी पत्रकार ने उनसे दुनिया को संदेश देने की बात कही तो गांधीजी ने जो जवाब दिया वह बहुत मार्मिक है। उन्होंने कहा कि कह दो दुनिया को कि गांधी को अंग्रेजी नहीं आती। बेशक, इसके पीछे बंटवारे को लेकर उनका क्षोभ था, लेकिन ध्यान देने की बात है कि पूरे राष्ट्रीय आंदोलन को गांधीजी ने हिंदी से जोड़ दिया था। और यही कारण है कि अन्य भाषाभाषी नेताओं को भी हिंदी की शरण में आना पड़ा।
हिंदी के लेखकों-कवियों के साथ भी गांधीजी के रिश्ते बहुत सघन रहे। महाकवि निराला का किस्सा तो प्रसिद्ध है ही कि जब गांधीजी ने कहा कि हिंदी में कोई टैगोर नहीं है, तो निराला भड़क गए और गांधीजी से प्रतिवाद किया। गांधीजी ने अपनी भूल स्वीकार भी की। ऐसा ही पांडेय बेचन शर्मा उग्र जी के साथ हुआ। उनकी किताब चाकलेट पर जब बनारसी दास चतुर्वेदी ने अश्लीलता का आरोप लगाया और उसे घासलेटी साहित्य कहा तो मामला गांधीजी तक पहुंचा। गांधीजी ने किताब पढ़ी और उग्रजी को उस आरोप से बरी करते हुए उसे समाज के हित में बताया। उस पर बाकायदा उन्होंने अपने पत्र हरिजन में लेख भी लिखा।
उपन्यास सम्राट प्रेमचंद ने माना भी कि उनका हिंदी और राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़ना गांधीजी के कारण ही संभव हुआ। गांधीजी जो हिंदी लिखते और बोलते थे, उसे वे हिंदी नहीं, बल्कि हिंदुस्तानी कहते थे। यह उस समय की संस्कृतनिष्ठ हिंदी से अलग थी। यह सहज-सरल हिंदी थी, जिसे गांधीजी ने एक संपर्कभाषा के रूप में प्रयोग किया। उनका यह वाक्य बहुत प्रसिद्ध है कि ‘राष्ट्रीय व्यवहार में हिंदी को काम में लाना देश की उन्नति के लिए आवश्यक है।’
Hindi ke liye gandhi ji ka kya tha yogdan