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समर्थ लोगों के साथ यात्रा कर रही है ‘द हिन्दी’

समर्थ लोगों के साथ यात्रा कर रही है ‘द हिन्दी’
  • PublishedAugust , 2019

किसी भी परिकल्पना को साकार करने के लिए अत्यावश्यक है कि उसके साथ कैसे लोग हैं ? उनकी सोच और संस्कार कैसी है ? उनका मूल क्या है ? उनके पास कार्यानुभव कितना है ? ऐसे कई दूसरे सवाल भी हो सकते हैं, जिनका जवाब ही तय करता है कि आपने जो यात्रा प्रारंभ किया है, उसका प्रारब्ध कहां तक है. द हिन्दी को इस बात का पूरा संतोष है कि उसके साथ समर्थ लोग हैं. अपने-अपने क्षेत्र में दशकों तक कार्य करने वाले कुशल साथी हैं. वो चाहे पत्रकारिता के क्षेत्र से हों, सामाजिक सरोकार से आते हों, साहित्य से हों अथवा कला के क्षेत्र से. चूंकि, द हिन्दी तकनीक के सहारे बाजार में अपनी यात्रा पर है, इसलिए तकनीक के मंझे हुए लोग हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं. जिन लोगों ने अपने-अपने तरीके से बाजार को समझा है और अपनी उपस्थिति दर्ज कराई, वे भी हमारे साथ हैं. कुल मिलाकार जो भी हैं अपने-अपने क्षेत्र के निष्णात हैं.

द हिन्दी ने हिन्दी काउंसिल और सांस्कृतिक परिषद बनाया है. इसके साथ ही युवा साथियों के लिए सहयात्री का मंच है. जिनके हृदय में भारत बसता है, जो भारतीयता के रंग से सराबोर होना चाहते हैं, जिन्हें अपनी कला-संस्कृति, वैदिक सभ्यता से लेकर आधुनिक भारत पर गर्व है, और जो हिन्दी के लिए बहुत कुछ करना चाहते हैं, उनके लिए द हिन्दी काउंसिल है. हमारी मातृभाषा को वैश्विक स्तर पर सशक्त पहचान मिले, इसके लिए हमने द हिन्दी काउंसिल का गठन किया है.

हम, हिन्दी के साथ ही भारतीय भाषाओं की साहित्यिक विरासत को और अधिक समृद्ध करने के उद्देश्य से एकत्र हुए हैं. हमने राष्ट्रीय अखंडता, बहुलतावादी संस्कृति और साहित्य की सृजनशीलता को प्रोत्साहित करना अपना मुख्य लक्ष्य बना लिया है. द हिन्दी काउंसिल एक अभियान चला रही है, हिंदी और मातृभाषा के लिए।द हिन्दी काउंसिल तमाम उन लोगों से अपने साथ जुड़ने का आग्रह करता है, जो भारतीयता के रंग में रंगना चाहते हैं. जो हिन्दी की समृद्ध पंरपरा को आगे बढ़ाना चाहते हैं. जो भारतीय मूल्यों को समाज में फिर से प्रचारित-प्रसारित करना चाहते हैं. द हिन्दी काउंसिल के अंतर्गत हम उन प्रबुद्ध लोगों को शामिल करना चाहते हैं, जिन्होंने अपने-अपने क्षेत्र में पहचान बनाया है और भारत का नाम पूरी दुनिया में बरकरार रखा है. समाज के लिए आदर्श बने हैं. सामाजिक सरोकारों में सदा संलग्न रहे हैं. जो हमारी हर गतिविधि में हमारा साथ देने को प्रतिबद्ध हैं.

हाल के वर्षों में हमें और हम जैसे कुछ लोगों को यह आभास हो रहा है कि भारतीय संस्कृति पर पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव अधिक पड़ रहा है. समाज संक्रमण के दौर से गुजर रहा है. हमारी नई पीढ़ी भारत की सभ्यता और संस्कृति से उस रूप में नहीं जुड़ रही है, जिसकी अपेक्षा थी. इसलिए हमने एक अभियान चलाया है. उसी अभियान का हिस्सा है – द हिन्दी का सांस्कृतिक परिषद.

हमें यह कहने में दिक्कत नहीं है कि हमारा समाज और अधिसंख्य लोग सांस्कृतिक दबाव में आ रहे हैं. पश्चिमी देशों की जीवनशैली तथा मूल्य अपना रहे हैं. हम अपने भारतीय वाले नैतिकता, कर्तव्य तथा समाज के मूल्य, जिन्होंने हमें अभी तक स्थापित रखा है, छोड़ कर पाश्चात्य, व्यक्तिपरक तथा स्व-केन्द्रित दृष्टिकोण अपना रहे हैं. इसके लिए यह आवश्यक है कि हम उन मूल मूल्यों को याद रखें, जो कि भारत का मूल चरित्र रहा है. जिसमें भारतीयता का तत्व हैं. हम यह न भूलें कि हम भारतीय हैं. हमें वैसा ही रहना चाहिए न कि हम केवल नकलची बन कर जियें. यदि हमने केवल नकल की, तो हम अपनी मौलिकता, अपनी विशिष्टता खो देंगे, जो हमें जीवन देती है. जिन्हें भी भारतीय सभ्यता-संस्कृति से लगाव है, अपने अभियान में हम उनका सहर्ष स्वागत करते हैं. द हिन्दी सांस्कृतिक परिषद उन सभी लोगों से अपने साथ जुड़ने का आग्रह करता है, जो भारतीय सभ्यता-संस्कृति के रंग में स्वयं को सरोबार करना चाहते हैं. जो भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों व परंपरा को समाज में फिर से प्रचारित-प्रसारित करना चाहते हैं.

सहयात्री जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है – जो हमारे साथ यात्रा कर रहे हैं. विशेषकर युवा हमारे साथ जुड़ रहे हैं. देश के कई नामचीन पत्रकारों ने अपनी सहमति प्रदान की है सहयात्री बनने के लिए. समाज के कई दूसरे क्षेत्र में काम कर रहे प्रबुद्ध लोगों ने संपर्क करके अपनी संस्तुति दी है. द हिन्दी समय-समय पर गोष्ठी और परिचर्चा का आयोजन करती है. अपनी भाषा और अपनी संस्कृति के आंगन में बैठकर सम्यक व सार्थक संवाद करना हमें रुचिकर लगता है.

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Written By
टीम द हिन्दी

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