मंगलवार, 24 दिसंबर 2024
Close
Uncategorized टेप रिकॉर्डर प्रेस विज्ञप्ति हाल फिलहाल

राजनीतिक शुचिता की मिसाल थी सुषमा स्वराज

राजनीतिक शुचिता की मिसाल थी सुषमा स्वराज
  • PublishedJune , 2020

 डॉ. नंद किशोर गर्ग 

सुषमा स्वराज अब इस दुनिया में नहीं हैं। उनके न होने का अहसास मुझे अब तक नहीं हो रहा है। ऐसा लगता है मानो वह एक बार फिर मेरे सामने होंगी और हंसते हुए अपने चिरपरिचत अंदाज में कहेंगी कैसे है भाई साहब। सुषमा स्वराज और मेरा साथ चार दशक पुराना है। 1975 मेरी उनसे पहली बार मुलाकात हुईं थी। देशभर में लोग इंदिरा गांधी व्दारा थोपे गए आपातकाल का विरोध कर रहे थे। मैंने भी दिल्ली में अपेन अधिवक्ता साथियों के साथ आपातकाल के विरोध में एक सभा का आयोजन किया था। अधिवक्ताओं के उस कार्यक्रम में पहली बार मेरी सुषमा स्वराज से मुलाकात हुई थी। एक अधिवक्ता के तौर पर उन्होंने बेहद तार्किकता के साथ इंदिरा गांधी की नीतियों का विरोध किया और उस सभा में ऐसा प्रभावशाली भाषण दिया कि मैं उनकी भाषणशैली का मुरीद हो गया। उस वक्त उनकी उम्र बाईस साल के लगभग थी इतनी कम उम्र में इतना प्रभावशाली राजनीतिक भाषण देकर उन्होंने सभा में उपस्थित सभी लोगों को प्रभावित कर दिया था। मैं भी उन दिनों युवा ही था और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का सक्रिय कार्यकर्ता था। उसी दौरान मुझे पता चला कि सुषमा जी के पिता भी संघ के प्रचारक थे। मगर सुषमा जी ने अपना पहला विधानसभा चुनाव जनता पार्टी के टिकट पर लड़ा था जिसे जीत कर वह हरियाणा सरकार में देश में सबसे कम उम्र की शिक्षा मंत्री बनी थी। युवा अवस्था से ही वह वादविवाद प्रतियोगिताओं में अपनी पहचान बना चुकी थी स्कूल एवं कॉलेज स्तर पर उन्होंने वाद विवाद प्रतियोगिताओं के जरिए कई पुरस्कार प्राप्त किए थे।

1977 के लोकसभा चुनावों में सुषमा जी ने जनता पार्टी के लिए सघन प्रचार किया था। उस वक्त तक लोग उनकी भाषणशैली के कायल हो चुके थे। मुझे याद हैं कि आपातकाल के दिनों में जेल में बंद जार्ज फर्नाडिज के चुनाव का संचालन करने वे बिहार के मुजफ्फरपुर गईं थीं। जहां उन्होंने सघन प्रचार अभियान चला कर जार्ज फर्नाडिज को लोकसभा में भेजने में अहम भूमिका निभाई थी। सुषमा स्वराज अपने पिता के संघ के प्रचारक होने के बावजूद भी हरियाणा के बड़े समाजवादी नेता भगवत दयाल शर्मा से प्रभावित होकर ही जनता पा्र्टी की नेता बनी थीं। मगर बाद में जब संघ के प्रचारक एवं तत्कालिन जनसंघ के वरिष्ठ नेता कृष्ण लाल शर्मा से उनकी मुलाकात हुई तो सुषमा स्वराज भारतीय जनता पार्टी में आ गईं।

भारतीय जनता पार्टी में आने के बाद जल्दी ही सुषमा स्वराज ने अपनी संगठन क्षमता, भाषणशैली, हाजिर जवाबी और कार्यकर्ताओं से संपर्क पार्टी में अपना स्थान बना लिया। भारतीय जनता पार्टी में उन दिनों राजमाता विजया राजे सिंघिया भाजपा की प्रमुख महिला राजनेता थीं जिनके बाद सुषमा स्वराज की भागिदारी भी भाजपा में बढने लगी थी। बहुत जल्दी ही सुषमा स्वराज ने भाजपा की राष्ट्रीय राजनीति में अपना अहम स्थान कायम कर लिया। देशभर में उन्होंने भाजपा के लिए संगठन खड़ा करने, चुनाव का संचालन करने और कार्यकर्ताओं को जोड़ कर रखने का काम बखूबी किया।

भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता मदन लाल खुराना जब दिल्ली के मुख्यमंत्री चुने गए तो उनके व्दारा छोड़ी गई दक्षिणी दिल्ली लोकसभा सीट से भाजपा ने सुषमा स्वराज को उम्मीदवार बनाया। उस चुनाव में मेरी सक्रिय भागिदारी और मेरे चुनाव प्रंबधन से वह बहुत खुश हुईं। उसी दौरान हरियाणा में भाजपा को नए सिरे से खड़ा करने के लिए पार्टी ने साहिब सिंह वर्मा, सुषमा स्वराज और मुझे दायित्व सौंपा था। भाजपा ब्राह्मण, वैश्य और जाट समुदाय को अपने पक्ष में जोडने के लिए प्रयास कर रही थी। उसी दौरान मैंने दीनबंधु सर छोटू राम की जन्म स्थली सांपला और अपने मामा के गांव छारा में भाजपा के पक्ष में दो बड़ी सभाओं का आयोजन कराया था दोनों ही सभाओं में सुषमा स्वराज ने जोरदार भाषण दिया था। इसी बीच दिल्ली में सत्ता परिवर्तन हुआ और तेजी से बदले घटनाक्रम के बाद पार्टी आलाकमान ने सुषमा स्वराज को दिल्ली का मुख्यमंत्री बना दिया। न चाहते हुए भी सुषमा स्वराज को दिल्ली के मुख्यमंत्री का पद संभालना पड़ा दिल्ली के विधानसभा चुनाव में दो माह का वक्त था ऐसी परिस्थिति में वह मुख्यमंत्री नहीं बनना चाहती थी। मगर पार्टी की अनुशासित सिपाही होने के कारण उन्होंने आलाकमान की आज्ञा का पालन किया। जिसके बाद हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा 15 विधायकों की संख्या पर सिमट कर रह गई और आज तक दिल्ली में भाजपा की सरकार नहीं बन पाई। विधानसभा चुनाव में सुषमा स्वराज दिल्ली की हौजखास विधानसभा से चुनाव जीती थीं मगर पार्टी की हार के बाद उन्होंने हौजखास से त्यागपत्र देकर पुनः राष्ट्रीय राजनीति में अपनी आमद दर्ज कराई।

मेरे ख्याल से सुषमा स्वराज दिल्ली की मुख्यमंत्री नहीं बनना चाहती थी उन्हें एक तरह से दिल्ली की राजनीति में थोपा जा रहा था जिसे वे भी जानती और समझती थी मगर अनुशासन में बंधे होने के कारण उन्होंने मुंह नहीं खोला। विधानसभा चुनाव के बाद वह नेता प्रतिपक्ष नहीं बनना चाहती थी। इसलिए उनके हौजखास विधानसभा से त्यागपत्र देने के बाद भाजपा वह सीट भी उप चुनाव में खो बैठी और विधानसभा में पार्टी की संख्या महज 14 रह गई।

मेरे साथ उनके संबंध बहुत प्रगाढ़ रहे वे मुझे बड़ा भाई मानती थी और मैं भी छोटी बहन की तरह उन्हें सम्मान देता था। जब मुझे तीर्थ विकास परिषद का अध्यक्ष बनाया गया तो उस वक्त सुषमा जी राज्यसभा सदस्य थीं। हम लोग गोर्वधन में गिरिराज जी की परिक्रमा के मार्ग को तीर्थ यात्रियों के लिए सुगम बनाने का काम कर रहे थे। उस दौरान मैंने उनकी सांसद निधी से गिरिराज परिक्रमा मार्ग में स्ट्रीट लाइट लगाने की मांग की जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया। काम पूर्ण होने के बाद जब वे गिरिराज जी की परिक्रमा मार्ग पर पहुंची को बहुत खुश हुईं और भाजपा के राज्यसभा सदस्य दीनानाथ मिश्र और टी.एन. चतुर्वेदी की सांसद निधि से भी तीर्थ विकास परिषद के कामों के लिए धनराशि जारी कराने का काम किया। बाद में मुझे पता चला कि वह भगवान श्री कृष्ण की परम भक्त थी इसलिए उन्होंने अपनी बेटी का नाम भी बांसुरी रखा था।

सुषमा स्वराज भाजपा की एक मात्र ऐसी राजनेता थी जिन्होंने कर्नाटक, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली और हरियाणा जैसे प्रदेशों से विधानसभा, लोकसभा, राज्यसभा का चुनाव लड़ा और विजय दर्ज की थी। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में जब उन्हें स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया तो उन्होंने दिल्ली के एम्स की शाखाओं को भोपाल, ऋषिकेष, पटना, रांची, रायपुर और जम्मू में स्थापित करने का काम किया। नरेन्द्र मोदी सरकार में जब उन्होंने विदेश मंत्री का पदभार संभाला तो भारत की विदेश नीति को एक नई दिशा मिलना शुरू हुई। संयुक्त राष्ट्र संघ सहित विश्व के कई मंचों पर उन्होंने जोरदार ढंग से भारत का पक्ष रखा तो दुनियाभर के राजनेताओं ने उनका लोहा माना। एशिया के अशांत देशों सीरिया, यमन, अफगानिस्तान और ईराक में फंसे हजारों भारतीयों को उन्होंने सकुशल स्वदेश लाने का काम किया।

हाल ही में जब भारत सरकार ने कश्मीर से धारा-370  और 35-ए को समाप्त किया तो सुषमा जी ने ट्विट करते कहा कि वह इस दिन की ही प्रतिक्षा में थी शायद सुषमा स्वराज की यह भावना करोड़ो भारतीय लोगों की भावना थी जिसे उन्होंने प्रकट किया था। वास्तव में सुषमा स्वराज भारतीय राजनीति में शुचिता, स्पष्टवादिता, ईमानदारी, साफगोई और पारदर्शिता का हामी थी तभी तो उन्होंने स्वयं 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ने से मना कर दिया था और मंत्रीपद से हटने के एक माह के भीतर सरकारी बंगला छोड़ कर वे अपने निजी घर में चली गई थी। भारतीय राजनीति में उनके जाने से एक खालीपन आ गया है जो शायद कभी भर पाएं।

(लेखक दिल्ली सरकार में संसदीय सचिव रहे हैं)

Rajnitik suchita ki misaal thi sushma swaraj

Written By
टीम द हिन्दी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *