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काशी हिन्दू विश्वविद्यालय: समय के साथ बढ़ता गया सम्मान

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय: समय के साथ बढ़ता गया सम्मान
  • PublishedSeptember , 2019

टीम हिन्दी

पं. मदन मोहन मालवीयजी, डॉ. एनी बेसेंट एवं डॉ. एस. राधाकृष्णन् जैसे मनीषियों की दूरदर्शिता का जीवन्त प्रतीक यह राष्ट्रीय संस्था प्राचीन भारतीय ज्ञान-विज्ञान एवं आधुनिक वैज्ञानिक चिन्तन दृष्टि का एक अद्भुत संगम है। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (का.हि.वि.वि.), देश के अति-प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में से एक है जिसकी स्थापना महामना पंडित मदन मोहन मालवीयजी द्वारा सन् 1916 में की गयी थी। यह एक स्वायत्तशासी उत्कृष्ठ संस्था है जिसके वि़िजटर भारत के महामहिम राष्ट्रपतिजी हैं। यह एशिया का एकमात्र सबसे बड़ा आवासीय विश्वविद्यालय है।

इस विश्वविद्यालय की स्थापना ‘बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय एक्ट, एक्ट क्रमांक 16, सन् 1915’ के अंतर्गत हुई थी। पं. मदनमोहन मालवीय ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना का प्रारम्भ 1904 ई. में किया, जब काशी नरेश ‘महाराज प्रभुनारायण सिंह’ की अध्यक्षता में संस्थापकों की प्रथम बैठक हुई। 1905 ई. में विश्वविद्यालय का प्रथम पाठ्यक्रम प्रकाशित हुआ। इसे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय भी कहा जाता है। जनवरी, 1906 ई. में कुंभ मेले में मालवीय जी ने त्रिवेणी संगम पर भारत भर से आई जनता के बीच अपने संकल्प को दोहराया। कहा जाता है, वहीं एक वृद्धा ने मालवीय जी को इस कार्य के लिए सर्वप्रथम एक पैसा चंदे के रूप में दिया।

डॉ. एनी बेसेंट काशी में विश्वविद्यालय की स्थापना में आगे बढ़ रही थीं। इन्हीं दिनों दरभंगा के राजा महाराज ‘रामेश्वर सिंह’ भी काशी में ‘शारदा विद्यापीठ’ की स्थापना करना चाहते थे। इन तीन विश्वविद्यालयों की योजना परस्पर विरोधी थी, अत: मालवीय जी ने डॉ. बेसेंट और महाराज रामेश्वर सिंह से परामर्श कर अपनी योजना में सहयोग देने के लिए उन दोनों को राजी कर लिया। फलस्वरूप ‘बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी सोसाइटी’ की 15 दिसंबर, 1911 को स्थापना हुई, जिसके महाराज दरभंगा अध्यक्ष, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के प्रमुख बैरिस्टर ‘सुंदरलाल’ सचिव, महाराज ‘प्रभुनारायण सिंह’, ‘पं. मदनमोहन मालवीय’ एवं ‘डॉ. ऐनी बेसेंट’ सम्मानित सदस्य थीं।

विश्वविद्यालय ४ संस्थानों (चिकित्सा विज्ञान संस्थान, प्रौद्योगिकी संस्थान एवं कृषि विज्ञान संस्थान, पर्यावरण एवं संपोष्य विकास संस्थान), १६ संकायों (आधुनिक औषधि, आयुर्वेद, दन्त चिकित्सा, अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी, कृषि, पर्यावरण एवं संपोष्य विकास, कला, वाणिज्य, शिक्षा, विधि, प्रबन्ध शास्त्र, मंच कला, संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, दृश्य कला), १३२ विभागों, १ महिला महाविद्यालय (वोमेन्स कॉलेज) और ५ अन्तर्विषयी स्कूलों (द्रव्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, जैव-चिकित्सकीय अभियांत्रिकी, जैव-रसायन अभियांत्रिकी, जैव-प्रौद्योगिकी व जीवन विज्ञान) से मिलकर बना है। अनेक विभाग अपने उच्च शोध उपलब्धियों के लिए उच्चीकृत किये गये हैं; इनमें १८ यूजीसी विशेष सहायता कार्यक्रम (उच्चानुशीलन केन्द्र ८, विभागीय अनुसंधान सहयोग १०), यूजीसी मान्यता प्राप्त केन्द्र/ कार्यक्रम ४, अन्य कार्यक्रम ९ और डी एस टी एफ आई एस टी (विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी उन्नयन कोष) कार्यक्रम ७ सम्मिलित हैं। नगर में स्थित ४ महाविद्यालयों को का.हि.वि.वि. की सुविधाओं के लिए स्वीकृत किया गया है। विश्वविद्यालय द्वारा बच्चों के लिए ३ विद्यालयों का अनुरक्षण भी किया जाता है।

पवित्र धार्मिक नगर वाराणसी नगर में पतितपावनी गंगा के पश्चिमी तट पर स्थित यह विश्वविद्यालय भारत की धार्मिक राजधानी प्राच्य विद्या ज्ञान केन्द्र के रूप में प्रसिद्ध है। का.हि.वि.वि. के मुख्य परिसर का मनोहारी दृश्य १३०० एकड़ भू-क्षेत्र में फैला हुआ है जो अपने आकर्षक वास्तुकला वाले स्मारकों, विशाल परिसर, हरे-भरे मैदानों एवं वृक्षों से आच्छादित शानदार पथों द्वारा अपने संस्थापक महामना मालवीयजी की व्यापक कल्पनाशक्ति एवं दूरदर्शिता का परिचायक है। का.हि.वि.वि. का राजीव गांधी दक्षिणी परिसर, २६०० एकड़ भू-क्षेत्र में फैला हुआ है, जो मुख्य परिसर से लगभग ८० किमी. दूर बरकछा (मिर्जापुर) में स्थित है। का.हि.वि.वि. प्राच्य एवं पारम्परिक विषयों से लेकर आधुनिक विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तक के सभी शैक्षणिक विषयों में शिक्षण एवं अनुसंधान एक ही परिसर में स्थित होना इसकी अद्भुत पहचान है विश्वविद्यालय की एक विशिष्टता यह भी है कि यहॉं छात्रों, शिक्षकों एवं सहयोगी कर्मचारीगण एक साथ रहकर अपने शैक्षणिक लक्ष्यों के लिए शिक्षण एवं सीखने की गुरुकुल पद्धति अपनाते हैं। यह विश्वविद्यालय स्वयं में एक नगरीय व्यवस्था है जिसके पास अपने सभी सम्बन्धितों एवं आवासियों की आवश्यकताओं को सुलभ कराने, संचालित करने एवं अनुरक्षण के लिए इसकी अपनी स्वयं की सेवा एवं सहायक प्रणाली विद्यमान है।

विश्वविद्यालय का इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन, एशियन रिसर्च एंड डवलपमेंट बैंक, डिफेंस रिसर्च एंड डवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन, टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी, हिंदुस्तान एल्युमीनियम कंपनी, स्टील आथॉरिटी ऑफ़ इंडिया और भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड के सहयोग व समर्थन से चलाया जा रहा है। बीए, बीएससी, बीकॉम, एलएलबी प्रवेश परीक्षाओं के लिए बारहवीं में 45 फीसदी औसत अंक के साथ उत्तीर्ण होना ज़रूरी है। स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए स्नातक स्तर पर 48 फीसदी अंकों के साथ उत्तीर्ण होना चाहिए। इंजीनियरिंग और मेडिकल प्रवेश परीक्षा के लिए अच्छी तैयारी की ज़रूरत है।

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टीम द हिन्दी

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