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अटल जी की कविता और आजादी का स्वर

अटल जी की कविता और आजादी का स्वर
  • PublishedAugust , 2019

टीम हिन्दी

देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी एक अच्छेक राजनेता के साथ ही बहुत अच्छे कवि भी थे. संसद से लेकर अन्यत मौकों पर अपनी चुटीली बातों को कहने के लिए अक्सर कविताओं का इस्तेंमाल करते थे. उनका मौकों के हिसाब से कविताओं का चयन उम्दाक रहता था, जिसको अक्सभर विरोधी भी सराहा करते थे.

टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर ,
पत्थर की छाती में उग आया नव अंकुर,
झरे सब पीले पात,
कोयल की कूक रात,
प्राची में अरुणिमा की रेख देख पाता हूं.
गीत नया गाता हूँ.

पत्रकारिता से राजनीति में आए अटल बिहारी वाजपेयी ने कई मशहूर कविताएं लिखीं. जिनमें पाकिस्तान को लेकर लिखी उनकी एक कविता लोगों को आज भी भुलाये नहीं भूलती है उसमें अटलजी ने ना सिर्फ पाकिस्तान को धोया है बल्कि सारी दुनिया के सामने पाकिस्तान के असली चेहरे को बेनकाब किया.

इस कविता के जरिए उन्होंने पाकिस्तान की नापाक हरकतों और उसे समर्थन देने वाले देशों को जमकर कोसा. वाजपेयी की यह कविता सोशल मीडिया पर भी खूब पड़ी और शेयर की जाती है. ये है उनकी कविता जिसमें उन्होंने पाकिस्तान को जमकर कोसा है.

एक नहीं दो नहीं करो बीसों समझौते, पर स्वतंत्रता भारत का मस्तक नहीं झुकेगा.
अगणित बलिदानो से अर्जित यह स्वतंत्रता, अश्रु स्वेद शोणित से सिंचित यह स्वतन्त्रता.
त्याग तेज तपबल से रक्षित यह स्वतंत्रता, दुरूखी मनुजता के हित अर्पित यह स्वतन्त्रता.
इसे मिटाने की साजिश करने वालों से कह दो, चिनगारी का खेल बुरा होता है.
औरों के घर आग लगाने का जो सपना, वो अपने ही घर में सदा खरा होता है.

हर साल जब-जब हम पन्द्रह अगस्त पर विचार-विमर्श करते हैं, तब भी हमें अटल जी की कविता सोचने पर विवश करती है.
पंद्रह अगस्त का दिन कहता —
आज़ादी अभी अधूरी है.
सपने सच होने बाकी है,
रावी की शपथ न पूरी है.

जिनकी लाशों पर पग धर कर
आज़ादी भारत में आई.
वे अब तक हैं खानाबदोश
ग़म की काली बदली छाई.

कलकत्ते के फुटपाथों पर
जो आँधी-पानी सहते हैं.
उनसे पूछो, पंद्रह अगस्त के
बारे में क्या कहते हैं.

काल के कपाल पर लिखने और मिटाने की ताकत, हिम्मत और चुनौतियों के बादलों में विजय का सूरज उगाने का चमत्कार उनके सीने में था तो इसलिए क्योंकि वह सीना देश प्रथम के लिए धड़कता था. इसलिए हार और जीत उनके मन पर असर नहीं करती थी. सरकार बनी तो भी, सरकार एक वोट से गिरा दी गयी तो भी, उनके स्वरों में पराजय को भी विजय के ऐसे गगन भेदी विश्वास में बदलने की ताकत थी कि जीतने वाला ही हार मान बैठे.

Atal ji ki kavita aur azadi ka swar

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टीम द हिन्दी

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