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कौन थी भारत की मोनालिसा….बणी-ठणी

कौन थी भारत की मोनालिसा….बणी-ठणी
  • PublishedSeptember , 2023

bani-thani painting

जब आप अपनी अभिव्यक्ति को कुछ आड़ी तिरछी रेखाओं और रंगों की मदद से कैनवास पर कुछ ऐसा उकरते हो कि देखने वालों की आँखें और मन दोनों आनंदित हो जाए तो मान लिजिए यह एक अदभूत कला का उदाहरण है।भारत ही नहीं,पूरी दुनिया में जब कभी चित्रकला को लेकर बात की जाएगी तब राजस्थान की बात तो सामने आएगी ही और इसी राजस्थान में एक विशेष चित्रकला की शैली किशनगढ़ के बिना तो बातें पूरी हो ही नहीं सकती।

किशनगढ़ की ख्याति में चार चांद लगाती बणी-ठणी के चित्र()। वैसे तो बणी-ठणी से जुड़े चित्र आपको इंटरनेट की दुनिया में बड़े आराम से मिल जाएंगे। लेकिन क्या आपको जानना नहीं है कि इस बणी-ठणी के पीछे की रोचक कहानी क्या है। बणी-ठणी को जानने से पहले जिस किशनगढ़ शैली का यह हिस्सा है उसे भी तो जान लें।

किशनगढ़ शैली,जिसने जन्म दिया बण-ठणी को..

किशनगढ़ शैली का भारतीय चित्रशैली में अपना एक विशेष स्थान है। आज से लगभग 300 साल पहले राजपूत राजा,महाराजा रूप सिंह(1643-1658) के समय इस चित्रशैली का विकास हुआ। समय के पहियों के संग चलते चलते बणी-ठणी चित्रशैली ने भी अपने यौवनावस्था में कदम रखा। यह शैली अपने यौवनाव्सथा पर महाराजा सावंत सिंह(1748 से 1764) के समय पर पहुंच पायी। और इस समय ने इसे जन जन तक पहुंचा दिया। किशनगढ़ शैली में अपनी चित्रकारी से निहालचंद मोरध्वज,अमरचंद,सीताराम,नानकराम,रामनाथ और जोशी सवाईराम ने चार चांद लगा दिया।

वैसे तो इस चित्रशैली में प्राकृतिक परिवेश को दर्शाते हुए नौकाएं,कमल से ढकें तालाब और नगरीय सभ्यता को दूर से दिखाये जाने की कला विशेष है। सफेद, गुलाबी और सिंदूरी रंग की मदद से चित्रों में जान फूंकती यह कला सिर्फ प्राकृतिक रंगो की छटा से ही बनाई जाती रही है। बणी-ठणी चित्रशैली को जिस कारण पूरी दुनिया में उसे जाना जाता है वह है महिला के भाव-भंगिमा में गौर वर्ण,छरहरा बदन,चौड़ी ललाट,पतले होठ और नुकीली नाक । काजल से भरें नयन के साथ साथ सुंदर गर्दन और मेंहदी से भरे हाथ ।

कहा जाता है कि महाराजा सावंत सिंह ने इस शैली को चार चांद तब लगा दिया जब बणी-ठणी की रचना करवाई। बणी-ठणी को उस समय के महान कलाकार निहालचंद ने उकेरा था।

bani thani painting

आइये सुनाएं आपको बणी-ठणी की कहानी..

कहा जाता है कि ऐसे तो इतिहास राजा-महाराजाओं की प्रेम कहानियों से पटा परा है। लेकिन जब कोई प्रेम कहानी किसी चरम को छू लेती है तो इतिहास भी इसे हमेशा के लिए अपने सुनहरे पन्नों में छाप लेता है। ऐसी ही एक प्रेम कहानी है राजा सावंत सिंह जी और उनकी एक दासी की। सावंत सिंह ने अपनी इस निजदासी जो कि उनकी प्रेयसी भी थी का चित्र (painting) बनवाया। सुंदर पोशाक से सजी धजी अपनी प्रेयसी के साथ सावंत सिंह आगे जाकर वृन्दावन में ही रहने चले गये। निहालचंद ने अपनी हाथों की कला का एक विहंगम चित्रण यँ उकेरा की पूरी जनता वाह वाह कर उठी। राजस्थानी भाषा मे बणी-ठणी का अर्थ होता है सजी-धजी ।यह चित्र की खुबसूरती ने इसे यूँ नामचीन बना दिया कि इस चित्र को पूरे राज्य के लोगों ने प्रशंसा की और इस तरह सावंत सिंह की इस प्रेयसी का नाम बणी-ठणी ही पड़ गया। बणी-ठणी की ये मूल पेंटिंग को अभी दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में सहेज कर रखा है। किशनगढ़ शैली में बनी इस पेंटिंग को एरिक डिक्सन और डॉ फैयाज अली ने खोजा था। एरिक को यह पेंटिंग इस कदर भा गई कि उन्होंने इसे भारत की मोनालिसा कह दिया।

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Written By
टीम द हिन्दी

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