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कब-कब पूजा जाता है चांद को ?

कब-कब पूजा जाता है चांद को ?
  • PublishedOctober , 2019

टीम हिन्दी

चांद पर न जाने कितने कवियों और शायरों ने रचनाएं रची हैं। चांद की तुलना प्रेमिका से भी की गई है। लेकिन, क्या आपको पता है कि भारतीय संस्कृति में चांद का कितना अधिक जुड़ाव है ? करवाचौथ । गणेश चतुर्थी, चौठ चंद्र। ईद। कोजागरा। ये त्योहार तो चांद पर ही निर्भर हैं।

करवा चौथ व्रत साल 2019 में 17 अक्टूबर को है। ये व्रत सुहागिन औरतें अपने पति की लंबी आयु की कामना के लिए रखती हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार ये व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को रखा जाता है। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं और शाम के समय शिव परिवार की पूजा करती हैं। लेकिन इस व्रत का पारण चांद देखने के बाद किया जाता है।

कोजागरा, मिथिलांचल का एक लोक पर्व, जिसे लक्ष्मी पूजा के नाम से भी जाना जाता है। आश्विन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को यह व्रत होता है। चांद तो यूं भी खूबसूरत होता है, परंतु इस रात चांद की खूबसूरती देखते बनती है। आश्विन और कार्तिक को शास्त्रों में पुण्य मास कहा गया है। वर्षा ऋतु में जहां कीचड़ और पानी का जमाव हो गया था अब वे सूख गये हैं और चारों ओर हरियाली बिखरी रहती है। नदियों एवं तालबों में जल भरे रहते हैं। किसान पुरानी फसल काट कर नई फसल बोने की तैयारी कर रहा होता है। हर तरफ नयापन और उमंग दिखाई देता है। इस खुशियों भरे मौसम में आसमान से बादल छट चुके होते है और धवल चांदनी पूरी धरती को आलोकित करती है।

कोजागरा पूर्णिमा की रात की बड़ी मान्यता है। कहा गया है कि इस रात चांद से अमृत की वर्षा होती है। बात काफी हद तक सही है। इस रात दुधिया प्रकाश में दमकते चांद से धरती पर जो रोशनी पड़ती है उससे धरती का सौन्दर्य यूं निखरता है कि देवता भी धरती पर आनन्द की प्राप्ति हेतु चले आते हैं। इस रात की अनुपम सुन्दरता की महत्ता इसलिए भी है, क्योंकि देवी महालक्ष्मी जो देवी महात्मय के अनुसार सम्पूर्ण जगत की अधिष्ठात्री हैं, इस रात कमल आसन पर विराजमान होकर धरती पर आती हैं। मां लक्ष्मी इस समय देखती हैं कि उनका कन भक्त जागरण कर उनकी प्रतिक्षा करता है, कौन उन्हें याद करता है।  मां इस रात देखती है कि कौन जाग रहा है और कौन सो रहा है। यही कारण है कि शाब्दिक अर्थ में इसे को-जागृति यानी कोजागरा कहा गया है।

क्या आपने कभी सोचा है कि  क्या चांद इतना बड़ा और चमकीला नहीं होता कि आपका ध्यान खींच सके ? चंद्रमा की अलग-अलग स्थितियों का मानव के शरीर और मन पर अलग-अलग तरह का असर पड़ता है। भारत में हर दिन का महत्व होता है क्योंकि चंद्रमा की हर स्थिति का मानव कल्याण के लिए किस तरह लाभ उठाया जा सकता है, यह हमारी संस्कृति में बखूबी समझा गया है। अलग-अलग स्थितियों का अलग-अलग मकसद के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

हमारे दैनिक जीवन में चंद्रमा का बहुत गहरा प्रभाव है, इसलिए हमने दो तरह के कैलेंडर बनाए। दुनियावी कामों के लिए, हमने सौर कैलेंडर इस्तेमाल किया, लेकिन अपने जीवन के दूसरे व्यक्तिपरक पहलुओं के लिए, जिसे आप सब्जेक्टिव अस्पेक्ट कह सकते हैं, जो महज सूचना या तकनीक नहीं बल्कि एक जीवंत पहलू है, हमारे पास चंद्र कैलेंडर है। आम तौर पर चंद्रमा का प्रभाव अतार्किक माना जाता है। पश्चिम में, किसी भी अतार्किक चीज को पागलपन का नाम दे दिया जाता है। अंग्रेजी भाषा में चंद्रमा को “लूनर” कहते हैं। इसी से एक कदम आगे बढ़ने पर आपको शब्द मिलता हैं- ‘लुनेटिक’ जिसका अर्थ है पागल या विक्षिप्त। लेकिन भारतीय संस्कृति में, हमने हमेशा तर्क की सीमाएं देखीं। आपके जीवन के स्थूल पक्ष के लिए तर्क बहुत उपयोगी है। अगर आपको कारोबार करना है या घर बनाना है, तो आपको तार्किक होना होगा। लेकिन तर्क के परे एक आयाम है, जिसके बिना व्यक्तिपरक आयामों (सब्जेक्टिव अस्पेक्ट्स) तक नहीं पहुंचा जा सकता। जैसे ही हमारा तार्किक दिमाग गणनाओं के बदले अंतर्ज्ञान से जीवन को देखना शुरु करता है, चंद्रमा महत्वपूर्ण हो जाता है।

 मुख्य रूप से ‘लूना’ शब्द का मतलब चंद्रमा होता है, लेकिन इसका यह भी मतलब है कि आप तर्क से दूर हो गए हैं। अगर आपका सिस्टम सुव्यवस्थित नहीं है और अगर आप तर्क से दूर हो गए हैं तो आप पागलपन की ओर बढ़ जाएंगे। लेकिन अगर आप सुव्यवस्थित हैं, तो आप अंतर्ज्ञान की ओर बढ़ेंगे। चंद्रमा एक परावर्तन है। आप चंद्रमा को देख सकते हैं क्योंकि वह सूर्य की रोशनी को परावर्तित करता है। मनुष्य का ज्ञान भी एक तरह का परावर्तन है। अगर आप परावर्तन के अलावा कोई और चीज देखते हैं, तो इसका अर्थ है कि आप सच नहीं देख रहे हैं। कोई भी ज्ञान वास्तव में एक प्रतिबिंब होता है। चूंकि प्रतिबिंब चंद्रमा की प्रकृति है, इसलिए चंद्रमा को हमेशा से जीवन के गहरे अनुभवों या ज्ञान का प्रतीक माना जाता रहा है। इसलिए दुनिया में हर जगह चंद्रमा की रोशनी का रहस्यवाद या आध्यात्मिकता से गहरा संबंध रहा है। इस संबंध को दर्शाने के लिए ही आदियोगी शिव ने चंद्रमा के एक हिस्से को अपने सिर पर आभूषण के रूप में धारण किया था।

kab kab puja jata hai chand ko

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टीम द हिन्दी

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