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भाव की भाषा है हिन्दी

भाव की भाषा है हिन्दी
  • PublishedSeptember , 2020

टीम हिन्दी

भारत एक बहुभाषी देश है। इस कारण एक ऐसी भाषा की मांग बढ़ी जिसके माध्यम से आमजन के मध्य सम्पर्क साधा जा सके। यह काम हिंदी ने किया। हिंदी, उर्दू और संस्कृत की करीबी है। इसके साथ ही यह दक्षिण भारत की क्षेत्रीय बोलियों व उनके शब्द भण्डार को भी अपने शब्दकोष में शामिल करती है। हिंदी में बहिष्कार का भाव नहीं है बल्कि वह तो सब को साथ लेकर समन्वय करती हुई आगे बढ़ती है। अटल बिहारी वाजपेयी, कपिल देव, नरेन्द्र मोदी आदि बहुत से लोगों ने हिंदी के दम पर ही देश में नाम रोशन किया है. इन्होंने अपनी कामयाबी से उन लोगों को झूठा साबित कर दिया जो यह कहते फिरते हैं कि वे इंगलिश न आने के कारण असफल हो गए.

कहा जाता है कि व्यक्ति जिस भाषा का ज्ञाता होता है उस भाषा में वह अपने विचारों का आदान प्रदान आसानी से कर सकता है और सामने वाले पर अपना अच्छा प्रभाव जमा सकता है. ऐसा ही कुछ स्नेहा के साथ हुआ. वह हर क्षेत्र में बहुत तेज थी सिवा अंगरेजी बोलने के, जिस कारण उसे खुद पर बहुत झुंझलाहट होती. एक बार उस के स्कूल में डिबेट कंपीटिशन था. सभी छात्र इंगलिश में स्पीच दे रहे थे. स्नेहा ने भी हिम्मत नहीं हारी. स्टेज पर चढ़ने से पहले ही उस ने दृढ़ निश्चय कर लिया कि आज वह हिंदी में ही अपना भाषण देगी. भले ही वह जीते या न जीते. उस ने शब्दों और भाषा पर अपनी मजबूत पकड़ की वजह से ऐसा भाषण दिया कि सुनने वालों के रोंगटे खड़े हो गए. वहां उपस्थित छात्रों के साथ साथ जूरी मैंबर्स भी खड़े हो कर तालियां बजाने पर मजबूर हो गए.

भले ही वहां का माहौल अंगरेजी का बना हुआ था, लेकिन सिवा स्नेहा के किसी ने भी कौंसैप्ट की गहराई को समझ उसे आज के संदर्भ से जोड़ने की कोशिश नहीं की थी और इसी का नतीजा था कि वह अव्वल आई. जिस भाषा पर हमारी अच्छी कमांड होती है हमें उस में काम करने में भी बहुत मजा आता है, जिस से हमारा दिमाग ज्यादा क्रिएटिव सोचता है. इस से हमें कई तरह की योजनाएं बना कर बेहतर रिजल्ट मिल पाते हैं वरना दूसरी भाषा में काम करते हुए हमें उसे समझने में काफी समय लग जाता है ऐसे में उस भाषा में क्रिएटिव सोचने का तो सवाल ही नहीं उठता|

Bhav ki bhasha hai hindi

Written By
टीम द हिन्दी

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