जड़ें मजबूत हैं भारत में पारिवारिक मूल्यों की
टीम हिन्दी
पारिवारिक मूल्यों को लेकर विश्व में यह प्रश्न पूछा जाने लगा है कि परिवार का इसी प्रकार विध्वंस होना था तब मानव समाज ने परिवार को अस्तित्व में क्यों लाया और इसे बनाए रखने की निरंतर कोशिश क्यों जारी रखी? आखिर कोई न कोई बात ऐसी होगी ही जो यह सुनिश्चित करती है कि पारिवारिक मूल्य बचे रहना चाहिए और इन्हीं के कारण समाज में शांति व व्यवस्था बनी रहती है.
परिवार एक स्थायी और सार्वभौमिक संस्था है. किन्तु इसका स्वरूप अलग अलग स्थानों पर भिन्न हो सकता है. पश्चिमी देशों में अधिकांश नाभिकीय परिवार पाये जाते हैं. नाभिकीय परिवार वे परिवार होते हैं जिनमें माता-पिता और उनके बच्चे रहते हैं. इन्हें एकाकी परिवार भी कहते हैं. जबकि भारत जैसे देश में सयुंक्त और विस्तृत परिवार की प्रधानता होती है. संयुक्त परिवार वह परिवार है जिसमें माता पिता और बच्चों के साथ दादा दादी भी रहतें हैं. यदि इनके साथ चाचा चाची ताऊ या अन्य सदस्य भी रहते हैं तो इसे विस्तृत परिवार कहते हैं. वर्तमान में ऐसे परिवार बहुत कम देखने को मिलते हैं.
आगस्त कॉम्टे कहते हैं कि परिवार समाज की आधारभूत इकाई है. एक अच्छा परिवार समाज के लिये वरदान और एक बुरा परिवार समाज के लिये अभिशाप होता है. क्योंकि समाज में परिवार की भूमिका प्रदायक की होती है. परिवार सदस्यों का समाजीकरण करता है, साथ ही सामाजिक नियंत्रण का कार्य करता है क्योंकि सभी नातेदार सम्बन्धों की मर्यादा से बंधे होते हैं. एक अच्छे परिवार में अनुशासन और आजादी दोनों होती हैं.
पहले व्यक्ति का उद्देश्य परिवार का सुख होता था. किन्तु आज व्यक्ति स्वयं के हित में सोचता है. वह अधिक उपयोगितावादी और सुखवादी हो गया है. जिस कारण से संयुक्त परिवार टूट रहे हैं. प्रत्येक व्यक्ति की इच्छा होती है की उसकी वृद्धावस्था सुचारू रूप से गुजरे. उसे कोई तकलीफ न उठानी पड़े। यह सब एक सयुंक्त परिवार में ही संभव है. परिवार में सर्व हित की भावना अब नहीं देखी जाती. संयुक्त परिवार में संघर्ष वधू और परिवार के बीच थे. एकाकी परिवार में ये संघर्ष पति पत्नी के बीच आ गये हैं. भविष्य के संघर्ष माता पिता और उनके बच्चों के बीच होंगे. भाई बहन के बीच संघर्ष जारी है. उतराधिकारी के मामले इसी की देन हैं. लेकिन प्रश्न ये है कि संयुक्त परिवारों में इतना विखंडन एवं परिवर्तन आखिर क्यों हो रहा है ? तो इसके अनेक कारण हो सकते है. जैसे -आधुनिकता , नगरीकरण , रोजगार हेतु पलायन , महत्वकांक्षा , स्वार्थवाद , घमंड , विचारों में असमानता आदि.
कुछ विद्वान कहते हैं कि आधुनिकता , नगरीकरण और बढते उपभोक्तावाद के कारण परिवार समाप्त हो रहे हैं. लेकिन यह गलत धारणा है क्योंकि परिवार एक ऐसी संस्था है जो विवाह पर आधारित है और विवाह संतान उत्पत्ति से सम्बंधित है. अतः परिवार मनुष्य की मूल भावनाओं से जुड़े हुए हैं. अतः परिवार कभी समाप्त नहीं हो सकते. स्वरूप बदल सकता है. दुर्भावनाएं बढ़ सकती हैं अर्थात संरचना बदल सकती है किन्तु प्रकार्य वही रहेंगे. परिवार बच्चों को जन्म देंगे ही. उनका पालन पोषण करेंगे ही तथा सामाजिक सुरक्षा प्रदान करते रहेंगे.
jade mazbut hai bharat mei parivarik mulyao ki