गाय का गोबर : हमारी सभ्यता से संस्कृति तक
गोबर वस्तुतः गो + वर है। यानी गौ माता का दिया वरदान। गाय के गोबर को हमारी भारतीय संस्कृति में हमेशा से अत्यधिक महत्व दिया गया है। पंचगव्य में एक तत्व गोबर भी शामिल है। गांवों में तो आज भी किसी मांगलिक कार्य से पहले पूरे घर को गोबर से लिपा जाता है। आज भी भारत के कई ग्रामीण क्षेत्रों में गोबर के सूखे उपलों का प्रयोग ईंधन के रूप में किया जाता है। गोबर वातावरण को शुद्ध रखता है और काफी पवित्र भी माना जाता है। इसलिए कहा गया है-
गोमूत्रं गोमयं क्षीरं दधि सर्पिस्तथैव च।
गवां पञ्च पवित्राणि पुनन्ति सकलं जगत्।।
– गौ महिमा का बखान करते हुए महर्षि आपस्तम्ब राजा नभग से कहते हैं – गौओं के मूत्र, गोबर, दूध, दही और घी – ये पाँचों वस्तुएं पवित्र है और संपूर्ण जगत को पवित्र करती है।
दीवाली पर धनवानों के घरों में धनदेवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है, पर पूरे राष्ट्र का धन तो वास्तव में गोबर ही है, जो सभी के लिए उपादेय है। यह एक ऐसा धन है, जो खजाने का नहीं, बैंक का नहीं, आभूषण – जवाहरात का नहीं, पर समग्र जीवन-चक्र का, आम जनता के भरण-पोषण से जुड़ी कृषि सभ्यता का धन है। यह धन रोटी देता है, कपड़ा देता है और मकान देता है, फूलों में सबसे बड़ा फूल कपास देता है, जिससे बने कपड़े से दुनिया अपना तन ढकती है।
वैज्ञानिकों ने भी गोबर पर शोध करके यह प्रमाणित कर दिया है कि, ‘गोबर से अनेक प्रकार के जीवाणु नष्ट होते हैं।’ गोबर से बनी खाद भी काफी उपयोगी होती है। इसमें भारी मात्रा में नाइट्रोजन होता है। भारतीय गाय के गोबर से बनी खाद ही कृषि के लिए सबसे उपयुक्त साधन है। खेती के लिए भारतीय गाय का गोबर अमृत समान माना जाता है। इसी अमृत के कारण भारत भूमि सहस्रों वर्षों से सोना उगलती आ रही है।
गाय के गोबर का महत्व –
• प्राचीन समय में मिट्टी और गाय के गोबर को साधु संत अपने शरीर पर मलते थे। इसके पीछे एक धार्मिक कारण भी है – माना जाता है कि गाय के गोबर में माँ लक्ष्मी जी का वास होता है। इसलिए तो कहा गया है-
सर्वे देवा गवांमंगे तीर्थानि तत्पदेषु च।
तद् गुह्येषु स्वयं लक्ष्मीस्तिष्ठत्येव सदापितः।।
अर्थात् – गाय के शरीर में समस्त देवता, उसके खुरों यानी पैरों में सभी तीर्थ तथा उसके गोबर में स्वयं लक्ष्मीजी विराजमान रहती है।
• गाय के गोबर के अंदर कई प्रकार के जीवाणुओं को खत्म करने की भी क्षमता होती है। क्षय रोगियों को गौशाला में रखने से गोबर एवं गौमूत्र की गंध से क्षयरोग के जीवाणु मर जाते हैं।
• गोबर का उपयोग करके हवन कुंड का निर्माण किया जाता है। तथा उसमें अग्नि प्रज्जवलित करने हेतु गोबर के उपलों का प्रयोग किया जाता है। उपलों में गाय का घी, तेल, शक्कर, चावल आदि डालकर हवन किया जाता है। जिससे आसपास का वातावरण शुद्ध होता है।
• इस समय सम्पूर्ण विश्व ‘ग्लोबल वार्मिंग’ की समस्या से जूझ रहा है। और धीरे – धीरे पृथ्वी की ओजोन परत में भी छिद्र बढ़ता जा रहा है। ऐसे में घातक पराबैंगनी किरणों को अवशोषित करने की क्षमता केवल गाय के गोबर में ही है।
• गैस और बिजली संकट के दौर में गांवों में आजकल गोबर गैस प्लांट लगाए जाने का प्रचलन बढ़ रहा है। पेट्रोल, डीजल, कोयला व गैस ये सब तो प्राकृतिक स्रोत है, किंतु बायोगैस, यह तो कभी न समाप्त होने वाला स्रोत है। जब तक गौवंश है, तब तक हमें यह ऊर्जा मिलती रहेगी। इन दिनों तो गैस टंकी के भाव भी आसमान छू रहे हैं, ऐसे में यदि गोबर गैस प्लांट से गैस ली जाए तो भविष्य में हमें अवश्य ही लाभ होगा।
गोबर सबके लिए उपयोगी, अनिवार्य और अनुपम होने से आजीविका का संबल और जीवन-पोषण का मुख्य स्रोत है। अत: गोबर भारत राष्ट्र का उत्कृष्ट धन है।
Gaaye ka gobar humari Sabhyata se sanskriti tak