हिन्दी के साथ बढ़ें, सुगति सोपान के आयोजन में वक्ताओं की राय
नई दिल्ली। हिन्दी के प्रख्यात कवि रामधारी सिंह दिनकर राष्ट्रवाद के नायक थे। उनकी राष्ट्र भावना समिति नहीं थी। उनकी राष्ट्रीय चेतना संकीर्ण चेतना में नहीं बंधी थी। उनकी तमाम रचनाओं को जब हम पढ़ते हैं, तो यह बात स्वयमेव समझ में आ जाती है, वे बहुआयामी प्रतिभा के धनी थी। एक ओर रश्मिरथी है, तो दूसरी ओर उर्वशी। संस्कृति के चार अध्याय में पूरा भारतीय चिंतन निहित हैं। बिहार की माटी का ऐसा लाल, जिसकी रचनाओं ने हिन्दी साहित्य और भारतीय जनमानस पर गहरा प्रभाव छोड़ा। ये बातें हिन्दी भाषा और राष्ट्रीय कवि रामधारी सिंह दिनकर विषय पर आयोजित व्याख्यानमाला सह कवि गोष्ठी में आगत वक्ताओं ने कही। इसका आयोजन स्वयंसेवी संस्था सुगति सोपान एवं एमिलियोर फाउंडेशन ने किया। नई दिल्ली के हिन्दी भवन में आयोजित इस कार्यक्रम में सहयोगी संस्था के रूप में एडर और मीडिया पार्टनर न्यूज हरपल रहा।
व्याख्यानमाला की औपचारिक शुरुआत पद्मश्री डॉ श्याम सिंह शशि, मुख्य अतिथि स्वागता सेन पिल्लई, एमिलियोर फाउंडेशन के अध्यक्ष व सामाजिक सरोकार से जुड़े रबीन्द्रनाथ झा सहित अन्य अतिथियों ने दीप प्रज्वलित करके किया। भारतीय चिंतन और रामधारी सिंह दिनकर की बात करते हुए स्वागत भाषण रबिन्द्रनाथ झा ने दिया। दिनकर के सांगोपांग रचनाकर्म पर विषय-वस्तु की जानकारी डॉ सुशील गुप्त ने दिया। अपने संबोधन में डॉ श्याम सिंह शशि एवं स्वागता सेन पिल्लई ने कई अहम जानकारी और संस्मरण सुनाए।
राष्ट्रकवि दिनकर की जयंती के उपलक्ष्य में व्याख्यानमाला सह कवि गोष्ठी
द्वितीय सत्र में वैश्विक पटल और हिन्दी पर बात करते हुए युवा अध्येता रोहित कुमार ने कई उदाहरणों के संग बताया कि हाल के वर्षों में हिन्दी का प्राकृतिक विकास हो रहा है। तकनीक ने जिस प्रकार से हिन्दी को मान और सम्मान दिया, उसके बाद यह कहने में दिक्कत नहीं है कि आने वाले कल की भाषा हिन्दी ही है। हिन्दी ने युवाओं को आत्मविश्वास दिलाया है। सरकारी स्तर पर काम हो रहा है और अब दक्षिण के राज्यों में भी हिन्दी की स्वीकार्यता और व्यहारिकता में वृद्धि हुई है। रोहित कुमार ने कहा कि हिन्दी बढ़ेगा, तो देश बढ़ेगा।
इसी सत्र में ब्रह्मेन्द्र झा ने राष्ट्रीय संस्कृति और हिन्दी, सुश्री अनुराधा झा ने राष्ट्रीय एकता और हिन्दी, डॉ अमृत कुमार ने रश्मिरथी की प्रासंगिकता, निर्देश प्रजापति ने दिनकर और संस्कृति विषय पर अपने विचार रखें। इसके बाद दिनकर की कविताओं का पाठ किया गया। डॉ आभा, शंकर मधुपांश, संजीत झा सरस, निवेदिता झा मिश्रा, रामबाबू सिंह, दीप्ति अंगरीश, अंजना झा, क्षिप्रा भारती, रंजना झा, सोनी चैधरी, सोनी नीलू आदि लोगों ने काव्य पाठ किया।
आयोजन के दौरान हर अतिथियों को सुगति सोपान की अध्यक्ष और कार्यक्रम के संयोजक कुमकुम झा ने किया। इसके साथ ही हिन्दी भाषा अभियानी और द हिन्दी के प्रबंध संपादक तरुण शर्मा को भी सम्मानित किया गया।
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