कितने उपयोगी हैं मिट्टी के बर्तन ?
तपती धूप में झुलसने के बाद जब सूखी मिट्टी पर बारिश की बूंदे गिरती हैं, तो उसकी सौंधी खुशबू से धरती महक उठती है. जब गर्मी के मौसम में चिलचिलाती धूप से घर पहुंचे और घड़े का ठंडा पानी मिल जाये तो मन आनंदित हो जाता है. जब मिट्टी से बने बर्तन में खाना पकता है, तो उसकी खुशबू पूरे घर के साथ-साथ आसपास के घरों में भी फैल जाती है. खुशबू का जादू ऐसा कि जिसे भूख नहीं भी लगी हो, उसके मुंह में भी पानी आ जाए.
हम गाँव की बात करते हैं. तो हमें अपने दादा-दादी की बातें याद आती है. कैसे उस जमाने में मिट्टी के बर्तनों का इस्तेमाल होता था. आज भी कई घरों में मिट्टी के बर्तन में खाना पकता है. कस्बाई शहरों से लेकर महानगरों में पीने का पानी घड़े या सुराही में भरा जाता है. मिट्टी के कुल्हड़ों में चाय पीने का अपना ही एक अलग आंनद है. जब गाँव में हम मिट्टी के बर्तन को देखते हैं तो इसका मतलब ये नहीं है कि गाँव में एलपीजी गैस नहीं है या गाँव के लोग आज भी पिछड़े हुए हैं. इसकी सच्चाई यह है कि उनको अपने सेहत की चिंता है.
कहाँ से आये बर्तन ?
जब हम बात करते हैं मिट्टी के बर्तनों की, तो यह सवाल मन में आता है कि आखिर कहाँ से आये ये बर्तन ? माना जाता है कि मिट्टी के बर्तनों की शुरुआत 5500ई पूर्व सिन्धु घाटी सभ्यता से हुई. तब से लेकर आज के आधुनिक युग तक मिट्टी के बर्तनों को इस्तेमाल किया जा रहा है. काँगड़ा के बर्तनों का तरीका, हरप्पन संस्कृति की बर्तनों से मिलती-जुलती है.
हिन्दू धर्म में महत्ता
हिन्दू धर्म के अनुसार मिट्टी से पवित्र वस्तु कुछ नहीं है. इसलिए भगवान को मिट्टी के बर्तन में भोग लगाया जाता है. जन्म-मरन, शादी-ब्याह, तीज-त्यौहार, पूजा-पाठ ये सब अधूरे रह जाते, अगर मिट्टी के बर्तन नहीं होते. जब भी कभी घर में पूजा पाठ होता है, तो उसका प्रसाद मिट्टी के बर्तन मे ही बनता है. बिना मिट्टी के दिए के हम कोई भी पूजा नहीं कर पाते. पश्चिम बंगाल, बिहार और गुजरात में मिट्टी से भगवान की प्रतिमा बनती है, जिसकी लोग पूजा करते हैं.
कई राज्यों में है मिट्टी कला
हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, हिरयाणा, पश्चिम बंगाल, मणिपुर, बिहार जैसे राज्यों के मिट्टी के बर्तन प्रसिद्ध हैं. उन पर की गयी कारीगरी मन को मोह लेती हैं. हिमाचल का काँगड़ा अपने काले बर्तनों के लिए प्रसिद्ध हैं, उत्तर प्रदेश का मेरठ और हरियाणा का झज्जर सुराहियों के लिए जाना जाता है. कानपुर अपने बर्तन पर बने खुबसूरत नक्काशियों के लिए दुनिया में जाना जाता है. पश्चिम बंगाल के बीरभूमि और मणिपुर भी मिटटी के बर्तन के लिए विश्व प्रसिद्ध है.
क्या कहता है आयुर्वेद ?
आयुर्वेद कहता है कि खाना हमेशा मिट्टी के बर्तन में ही बनाना चाहिए. आयुर्वेद में उसके कई फायदे बताये गए हैं. ये खाने को जहरीली होने से बचाता और इसमें खाना लम्बे समय तक ताजा रहता है. इसमें कम तेल का इस्तमाल होता है, जिससे कोलेस्ट्रोल जैसी बीमारियों से आप दूर रह सकते हैं. साथ ही खाने का स्वाद के साथ साथ इसकी पौष्टिकता की मात्रा बरक़रार रहती है. पाचन शक्ति को मजबूत बनाता है. स्वास्थ्य और स्वाद दोनों के लिए मिट्टी के बर्तन इस्तेमाल होना ज़रूरी है.
Mitti ke bartan