इतिहास के पन्नों में अशोक-1
अशोक स्तब्ध थे! कलिंग विजय ने आखिर उन्हें क्या मिला यह सोच वह रथ से पैदल ही उतर आए। चारों तरफ रक्त रंजित शव बिखरे हुए थे। उन शवों से उठने वाली दुर्गन्ध ने अशोक की साँसों को जैसे रोक दिया हो। बच्चे बूढ़े और जवानों की लाशों पर अशोक अपनी विजय पताका चाह कर भी नहीं फैला पा रहा था। उसकी युद्ध आकांक्षाओं ने कलिंग को गिद्धों के लिए आराम गृह बना दिया था। जहाँ दूर दूर तक केवल मरघट सी ख़ामोशी छाई हुई थी।
अशोक के कलिंग विजय का सारा उन्माद धरती पर बिखरी लाशों से फुर्र हो चुका था। अशोक भीतर से पिघल रहा था… बुद्धं शरणम् गच्छामि का स्वर अशोक को अब और स्पष्ट सुनाई देने लगा था। वह उस स्वर को बार बार सुनना चाह रहा था। सहसा किसी के कराहने की आवाज से उसकी तन्द्रा टूटी अशोक पुनः लाशों के ढेर पर खड़ा अपने साम्राज्य का विस्तार देख रहा था। पानी …पानी की दर्द मिश्रित आवाज ने अशोक के ह्रदय की करुणा को झझकोर दिया। अशोक ने आदेश दिया पानी लाओ कोई…
अशोक के अंगरक्षक दौड़े और पानी लेकर लौटे। अशोक ने स्वयं पानी पिलाने का यत्न करने लगा! कौन हो तुम स्वर में अथाह पीड़ा थी? मैं अशोक… घायल मनुष्य के पीड़ा वाले शब्द अब सख्त हो गए। अशोक के लिए सारी दुनिया की घृणा उसके चेहरे पर उतर आई थी। उसने सिर दूसरी तरफ करते हुए कहा तुम्हारे हाथ से जल तो क्या विष भी धारण नहीं कर सकता। उसके चेहरे पर उपजी घृणा ने अशोक को जीता हुआ युद्ध भी हरा दिया।
सूरज नेपथ्य में जा रहा था अनेक बौद्ध भिक्षु घायलों के उपचार में लगे थे। भिक्षु शवों का निर्विकार भाव से दाह संस्कार कर रहे थे। उनके चेहरे पर केवल सेवा के भाव थे। सुख-दुःख में अटल न पाने की इच्छा, न खोने का डर! दूसरी तरफ अशोक था जो भारत के सबसे बड़े भू-भाग का स्वामी बन चुका था। भारत में अशोक से बड़ा साम्राज्य इतिहास में और किसी के पास नहीं था। फिर भी अशोक अशांत था, ग्लानि की अग्नि उसे भीतर-भीतर जला रही थी। सहसा फिर वही चिरपरिचित आवाज ने अशोक को अपनी ओर खींचा….बुद्धं शरणम् गच्छामि, अशोक बुदबुदाया बुद्धं शरणम् गच्छामि… अशोक को लगा जैसे मन भीतर की भावनाओं के ज्वार भाटे में उतार आ गया हो!
अशोक का ह्रदय परिवर्तित हो चुका था। यह तय था यह परिवर्तन भारत की राजनीति के आने वाले सालों में दिखेगा और वह दिखा भी। कलिंग पर सम्राट अशोक ने शासनकाल के आठवें वर्ष में विजय प्राप्त की थी। अगले ही वर्ष उसने बौद्ध धर्मं को अपना लिया। अशोक ने नए युग का सूत्रपात किया अशोक ने प्रशासन में मौलिकता की छाप छोड़ी लेकिन आचार्य चाणक्य के अर्थशास्त्र के दायरे के भीतर रहकर! अशोक पहले शासक थे जिसने प्रजा से अभिलेखों के माध्यम से बात की!
अशोक ने 14 शिलालेख बनवाये! इन्हें चतुर्दश शिलालेख भी कहा जाता है! प्रत्येक शिलालेख की अपनी विषयवस्तु और विशेषता है! जिनके बारे में हम अपने अगले लेख में बताएँगे!
सन्दर्भ – साक्षी है समय
Itihas ke panno me ashok-1