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ऐसे तय किया है रुपया ने अपना सफर

ऐसे तय किया है रुपया ने अपना सफर
  • PublishedJuly , 2019

टीम हिन्दी

यदि यह कहा जाए कि हमारा और आपका कोई भी काम अब रुपया के बिना नहीं हो सकता है, तो यह कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. लेकिन, क्या आपको पता है कि रुपया शब्द कब आया ? भारतीय रुपये को कहां-कहां मान्यता थी ? रुपये का स्वरूप कब-कब बदला ? आखिर मुद्रा का नाम रुपया ही क्यों दिया गया ?

आपको यह जानकारी होगी कि भारत विश्व की उन प्रथम सभ्यताओं में से है, जहां सिक्कों का प्रचलन शुरू हुआ. लगभग 6वीं सदी ईसा पूर्व में रुपये शब्द का अर्थ, शब्द रूपा से जोड़ा जा सकता है, जिसका अर्थ होता है चांदी. संस्कृत में रूप्यकम् का अर्थ है चांदी का सिक्का.

रुपया शब्द सन् 1540 – 1545 के बीच शेरशाह सूरी के द्वारा जारी किए गए चाँदी के सिक्कों के लिए उपयोग में लाया गया. मूल रुपया चाँदी का सिक्का होता था, जिसका वजन 11.34 ग्राम था.

आपको बता दें कि शेरशाह सूरी के शासनकाल के दौरान शुरू किया गया ‘रुपया’ आज तक प्रचलन में है. भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान भी यह प्रचलन में रहा. इस दौरान इसका वजन 11.66 ग्राम था और इसके भार का 91.7 प्रतिशत तक शुद्ध चांदी थी. 19वीं शताब्दी के अंत में रुपया प्रथागत ब्रिटिश मुद्रा विनिमय दर के अनुसार एक शिलिंग और चार पेंस के बराबर था, वहीं यह एक पाउंड स्टर्लिंग का 1.15 हिस्सा था. गौर करने योग्य बात यह है कि उन्नीसवीं सदी में जब दुनिया में सबसे सशक्त अर्थव्यवस्थायें स्वर्ण मानक पर आधारित थीं, तब चांदी से बने रुपये के मूल्य में भीषण गिरावट आयी. संयुक्त राज्य अमेरिका और विभिन्न यूरोपीय उपनिवेशों में विशाल मात्रा में चांदी के स्रोत मिलने के परिणामस्वरूप चांदी का मूल्य सोने के अपेक्षा काफी गिर गया। अचानक भारत की मानक मुद्रा से अब बाहर की दुनिया से अधिक खरीद नहीं की जा सकती थी. इस घटना को ‘रुपये की गिरावट’ के रूप में जाना जाता है. पहले रुपये (11.66 ग्राम) को 16 आने या 64 पैसे या 192 पाई में बांटा जाता था. रुपये का दशमलवीकरण 1869 में सीलोन (श्रीलंका) में, 1957 में भारत में और 1961 में पाकिस्तान में हुआ. इस प्रकार अब एक भारतीय रुपया 100 पैसे में विभाजित हो गया. भारत में कभी कभी पैसे के लिए नया पैसा शब्द भी इस्तेमाल किया जाता था.

प्राचीन भारत के सिक्कों पर मुख्यतया ब्राह्मी, खरोष्ठी एवं ग्रीक लिपि का प्रयोग किया जाता था. वहीं भाषाओं में यूनानी, प्राकृत, संस्कृत, द्रविण भाषाओं का प्रयोग किया जाता था. सिक्कों पर इनके अलावा अनेक चिह्नों का भी प्रयोग किया जाता था, जिससे इनके स्थान, समय और विशेषता का विभाजन किया जाता था. कई सिक्कों पर राजकीय चिह्न होते थे तो कुछ पर शासकाकृति का अंकन मिलता था. कुछ सिक्कों पर किसी विशिष्ट देवता या पशु के चिह्न भी अंकित होते थे.

वर्तमान में भारतीय रुपये का एक प्रतीक चिन्ह है. असल में, रुपये का चिह्न भारत के लोकाचार का भी एक रूपक है. यह नया प्रतीक देवनागरी लिपि के र और रोमन लिपि के अक्षर आर को मिला कर बना है, जिसमें एक क्षैतिज रेखा भी बनी हुई है. यह रेखा हमारे राष्ट्रध्वज तथा बराबर के चिह्न को प्रतिबिंबित करती है. भारत सरकार ने 15 जुलाई, 2010 को इस चिह्न को स्वीकार कर लिया है. यह चिह्न भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), मुम्बई के पोस्ट ग्रेजुएट डिजाइन डी. उदय कुमार ने बनाया है.

ऐसे हुई कागज के नोटों की शुरुआत

इतिहास बताता है कि रुपयों के कागज के नोटों को सबसे पहले जारी करने वालों में से थे – बैंक ऑफ हिन्दुस्तान (1770-1832), द जनरल बैंक ऑफ बंगाल एंड बिहार (1773-75, वारेन हॉस्टिग्स द्वारा स्थापित) और द बंगाल बैंक (1784-91). शुरुआत में बैंक ऑफ बंगाल द्वारा जारी किए गए कागज के नोटों पे केवल एक तरफ ही छपा होता था. इसमें सोने की एक मोहर बनी थी और यह 100, 250, 500 आदि वर्गों में थे. बाद के नोट में एक बेलबूटा बना था, जो एक महिला आकृति, व्यापार का मानवीकरण दर्शाता था. यह नोट दोनों ओर छपे होते थे, तीन लिपिओं उर्दू, बंगाली और देवनागरी में यह छपे होते थे, जिसमें पीछे की तरफ बैंक की छाप होती थी. 1800 सदी के अंत तक नोटों के मूलभाव ब्रितानी हो गए.

वर्ष 1861 में पेपर करेंसी कानून बनने के बाद नोटों पर केवल सरकार का एकाधिकार रह गया. महारानी विक्टोरिया के सम्मान में 1867 में पहली बार उनके चित्र की शृंखला वाले बैंक नोट जारी किए गए. ये नोट एक ही ओर छापे गए (यूनीफेस्ड) थे और पांच मूल्यों में जारी किए गए थे. काफी दिनों तक यह प्रचलन में रहा. बाद में बैंक नोटों के मुद्रण और वितरण का दायित्व 1935 में भारतीय रिजर्व बैंक के हाथ में आ गया. जॉर्ज पंचम के चित्र वाले नोटों के स्थान पर 1938 में जॉर्ज षष्ठम के चित्र वाले नोट जारी किए गए, जो 1947 तक प्रचलन में रहे. भारत की स्वतंत्रता के बाद उनकी छपाई बंद हो गई और सारनाथ के सिंहों के स्तम्भ वाले नोटों ने इनका स्थान ले लिया.

भारतीय रुपया 1957 तक तो 16 आनों में विभाजित रहा, परन्तु उसके बाद (1957 में ही) उसने मुद्रा की दशमलव प्रणाली अपना ली और एक रुपये की गणना 100 समान पैसों में की गई. महात्मा गांधी वाले कागजी नोटों की शृंखला की शुरुआत 1996 में हुई, जो आज तक चलन में है. नोटों के एक ओर सफेद वाले भाग में महात्मा गांधी का वाटर मार्क बना हुआ है. भारतीय नोट पर महात्मा गांधी की जो फोटो छपती हैं वह तब खींची गई थी जब गांधीजी, तत्कालीन बर्मा और भारत में ब्रिटिश सेक्रेटरी के रूप में कार्यरत फ्रेडरिक पेथिक लॉरेंस के साथ कोलकाता स्थित वायसराय हाउस में मुलाकात करने गए थे. यह फोटो 1996 में नोटों पर छपनी शुरू हुई थी. इससे पहले महात्मा गांधी की जगह अशोक स्तंभ छापा जाता था.

सभी नोटों में चांदी का सुरक्षा धागा लगा हुआ है जिस पर अंग्रेजी में आरबीआई और हिंदी में भारत अंकित है. प्रकाश के सामने लाने पर इनको देखा जा सकता है. पांच सौ और एक हजार रुपये के नोटों में उनका मूल्य प्रकाश में परिवर्तनीय स्याही से लिखा हुआ है. धरती के समानान्तर रखने पर ये संख्या हरी दिखाई देती हैं परन्तु तिरछे या कोण से देखने पर नीले रंग में लिखी हुई दिखाई देती हैं.

आपको यह भी बता दें कि हर भारतीय नोट पर किसी न किसी चीज की फोटो छपी होती हैं. जैसे- 20 रुपए के नोट पर अंडमान आइलैंड की तस्वीर है. वहीं, 10 रुपये के नोट पर हाथी, गैंडा और शेर छपा हुआ है, जबकि 100 रुपये के नोट पर पहाड़ और बादल की तस्वीर है. इसके अलावा 500 रुपये के नोट पर आजादी के आंदोलन से जुड़ी 11 मूर्ति की तस्वीर छपी हैं. भारतीय रुपये के नोट के भाषा पटल पर भारत की 22 सरकारी भाषाओं में से 15 में उनका मूल्य मुद्रित है. ऊपर से नीचे इनका क्रम इस प्रकार है – असमिया, बंगला, गुजराती, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मलयालम, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, तमिल, तेलुगु और उर्दू.

नोटों पर सीरियल नंबर इसलिए डाला जाता हैं, ताकि आरबीआई को पता चलता रहे कि इस समय मार्केट में कितनी करंसी हैं. रुपया भारत के अलावा इंडोनेशिया, मॉरीशस, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका की भी करंसी हैं. भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार भारत हर साल 2,000 करोड़ करंसी नोट छापता हैं.

Aise tay kiya hai rupay nei apna safar

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टीम द हिन्दी

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