गुरुवार, 26 दिसंबर 2024
Close
टेप रिकॉर्डर टॉप स्टोरीज

के. कामराज मानते थे प्रधानमंत्री बनने के लिए हिंदी और अंग्रेजी को जरूरी

के. कामराज मानते थे प्रधानमंत्री बनने के लिए हिंदी और अंग्रेजी को जरूरी
  • PublishedSeptember , 2019

टीम हिन्दी

तमिलनाडु की राजनीति में बिल्कुल निचले स्तर से अपना राजनीतिक जीवन शुरू कर देश के दो प्रधानमंत्री चुनने में महत्वूपर्ण भूमिका निभाने के कारण किंगमेकर कहे जाने वाले के. कामराज साठ के दशक में कांग्रेस संगठन में सुधार के लिए बनायी गई कामराज योजना के कारण विख्यात हुए. स्वतंत्रता सेनानी, गांधीवादी, तीन बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष रहे के. कामराज को स्वतंत्र भारत की राजनीति का पहला ‘किंगमेकर’ माना जाता है. गांधीवादी के. कामराज को भारतीय राजनीति में कई कारणों से याद किया जाता है. हम जब भी स्वतंत्र भारत की चर्चा करेंगे तो मशहूर कामराज योजना, लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी की प्रधानमंत्री के रूप में ताजपोशी करने समेत तमाम ऐसे दूसरे किस्से हैं जिनमें हमें कामराज का ज़िक्र मिलेगा.

15 जुलाई 1903 को कामराज का जन्म तमिलनाडु के विरदुनगर में एक व्यवसायी परिवार में हुआ था. 15 साल की उम्र में वे जलियावाला बाग हत्याकांड के चलते स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े. जब वे 18 साल के हुए तब गांधी ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की थी. कामराज इस आंदोलन में ज़ोर-शोर से शामिल हुए. 1930 में कामराज ने नमक सत्याग्रह में हिस्सा लिया और पहली बार जेल गए. इसके बाद तो उनके जेल जाने-आने का सिलसिला शुरू हो गया. ब्रिटिश सत्ता ने उन्हें करीब छह बार जेल भेजा और करीब 3,000 दिन जेल में बिताए.

राजनीति में आने के बाद उन्हें अपनी पढ़ाई की चिंता सताई. वो जेल में रहकर पढ़ाई पूरी करने लगे. जेल में रहते ही कामराज को म्युनिसिपल कॉरपोरेशन का चेयरमैन चुन लिया गया लेकिन जेल से बाहर आकर उन्होंने इस्तीफा दे दिया.

उनका कहना था, ‘आपको ऐसा कोई भी पद स्वीकार नहीं करना चाहिए, जिसके साथ आप पूरा न्याय नहीं कर सकते हैं. ‘ 1964 में नेहरू का देहांत हो गया. प्रधानमंत्री पद के लिए कांग्रेस में दो दावेदारों के बीच संघर्ष शुरू हुआ. अब सारा दारोमदार कामराज पर आ गया. कामराज के सामने अगला प्रधानमंत्री चुनने की चुनौती थी. उनसे यह सवाल पूछा जाने लगा कि नेहरू के बाद कौन? मोरारजी देसाई और लाल बहादुर शास्त्री इसके प्रबल दावेदारों में थे. शास्त्री को नेहरू का शिष्य माना जाता था. कामराज ने इस समय सर्वसम्मति की बात कर मोरारजी देसाई के तेवर ठंडे कर दिए. कामराज के नेतृत्व में सिंडीकेट ने शास्त्री का समर्थन किया. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता नीलम संजीव रेड्डी, निजा लिंगाप्पा, अतुल्य घोष, एसके पाटिल जैसे ग़ैर-हिंदी भाषी नेताओं के गुट को तब के प्रेस रिपोर्टर सिंडीकेट कहा करते थे, जिसकी अगुआई कामराज किया करते थे. कामराज के समर्थन से शास्त्री प्रधानमंत्री बन गए.

फिर लाल बहादुर शास्त्री की जनवरी 1966 में मौत हो गई. इस बार मोरारजी देसाई सर्वसम्मति की बात नहीं माने. वह मतदान कराने की बात पर अड़ गए. कामराज ने इंदिरा गांधी के लिए लामबंदी की. हालांकि सिंडीकेट ने इस बार कामराज के नाम का भी प्रस्ताव प्रधानमंत्री पद के लिए दिया, लेकिन उन्होंने इसके लिए साफ मना कर दिया. उन्होंने पश्चिम बंगाल के नेता अतुल्य घोष से कहा जिसे ठीक से हिंदी और अंग्रेजी न आती हो, उसे इस देश का पीएम नहीं बनना चाहिए. इस बार उन्होंने नेहरू की बेटी इंदिरा का समर्थन प्रधानमंत्री पद के लिए किया. इंदिरा कांग्रेस संसदीय दल में 355 सांसदों का समर्थन पाकर प्रधानमंत्री बन गईं.

प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के अंतरंग और तमिलनाडु राज्य के तीन बार मुख्यमंत्री रहे कामराज को कांग्रेस में ‘किंगमेकर’ के नाम से जाना जाता था. राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में नेहरू ही कामराज को लेकर आए थे. कामराज ने साठ के दशक के प्रारम्भ में महसूस किया कि कांग्रेस की पकड़ कमज़ोर होती जा रही है. उन्होंने नेहरू को एक योजना सुझाई और स्वयं 2 अक्टूबर 1963 को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया. उनका विचार था कि पार्टी के बड़े नेता सरकार में अपने पदों से इस्तीफा दे दें और अपनी ऊर्जा कांग्रेस में नई जान फूंकने के लिए लगाएं. उनकी इस योजना में उन्होंने स्वयं भी त्यागपत्र दिया और लाल बहादुर शास्त्री, जगजीवन राम, मोरारजी देसाई तथा एस. के. पाटिल जैसे नेताओं ने भी सरकारी पद त्याग दिए. इसी योजना को ‘कामराज योजना’ के नाम से जाना जाता है.

कामराज को दो पूर्व प्रधानमंत्रियों लालबहादुर शास्त्री के साथ 1964 तथा इंदिरा गांधी के साथ 1966 में काम करने का अवसर मिला. उनकी पहचान ‘दक्षिण के गांधी’ के रूप में थी. सादगी प्रिय कामराज को 1976 में मरणोपरांत देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न प्रदान किया गया. 2 अक्टूबर, 1975 को कामराज का चेन्नई में निधन हो गया था.

K kamraj mante the prathanmantri bannne ke liye hindi aur english ko jaruri

Written By
टीम द हिन्दी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *