सोमवार, 31 मार्च 2025
Close
Home-Banner मामला गरम हाल फिलहाल

जानें कच्चातिवु द्वीप की A..B..C..D, क्या है इसका इतिहास और क्यूं है यह विवादित ?

जानें कच्चातिवु द्वीप की A..B..C..D, क्या है इसका इतिहास और क्यूं है यह विवादित ?
  • PublishedApril , 2024

Katchatheevu Island: आइए हम आपको हाल ही में कभी भारत का अभिन्न अंग रहे कच्चातिवु द्वीप के बारे में बताते हैं। जी हां वैसे तो कच्चातिवु द्वीप को लेकर अभी भारत की राजनीति थोड़ी गरम है। लेकिन विवादों में सामने आया यह द्वीप दरअसल 70 को दशक तक भारत का हुआ करता था। इस पर भारत की संप्रभुता स्थापित होती थी। हालांकि, अभी इस द्वीप पर श्रीलंका की सरकार का अधिकार लागू होता है। आइए इस द्वीप के बारे में विस्तार से जानते हैं।

कहां है कच्चातिवु द्वीप ?

कच्चातिवु द्वीप पाक स्ट्रेट या यूं कहें पाक जलडमरूमध्य में एक छोटा सा निर्जन द्वीप है। यह बंगाल की खाड़ी को अरब सागर से जोड़ता है। वैसे तो काफी समय से यह श्रीलंका और भारत के बीच विवाद का क्षेत्र रहा था, जिसे साल 1976 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उस समय के श्रीलंकाई राष्ट्रपति श्रीमावों भंडारनायके को एक समझौते के अंतर्गत सौंप दिया था। साल 1974 में दोनों देशों के प्रमुखों के बीच कुल चार समुद्री समझौते हुए थे, जिनमें से एक था भारत की ओर से कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका को सौंपना।

कच्चातिवु द्वीप के बनने के पीछे का रहस्य

कच्चातिवु द्वीप का निर्माण एक ज्वालामुखी के विस्फोट के बाद हुआ था। यह एक ज्वालामुखीय द्वीप है। इसका निर्माण 14वीं शताब्दी में हुआ था। 17वीं शताब्दी तक यह द्वीप मदुरई के राजा रामनद के पास था। बाद में ब्रिटिश शासनकाल में इस पर मद्रास प्रेसीडेंसी का कब्जा हो गया। लंबे समय तक इस पर भारत तथा श्रीलंका दोनों अपना अधिकार दिखाते रहे। दोनों देशों के मछुआरे इस भूमि पर मछली पकड़े के लिए आते रहते हैं। हालांकि, आजादी के बाद भी यह भारत का ही हिस्सा रहा।

कच्चातिवु द्वीप का क्या सामरिक महत्व है?

इस द्वीप का इस्तेमाल दोनों देशों के मछुआरों द्वारा किया जाता रहा है। इस द्वीप पर श्रीलंका लगातार अपना दावा ठोकता रहता था। 26 जून 1974 को कोलंबो और 28 जून को भारत की राजधानी दिल्ली में दोनों देशों के बीच समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। इस समझौते के बाद कुछ शर्तों के साथ इस द्वीप को श्रीलंका को सौंप दिया गया।

शर्तों के अनुसार भारतीय मछुआरे भी अपना जाल सुखाने के लिए इस द्वीप का इस्तेमाल कर सकेंगे साथ ही यहां पर भारत के लोगों का आना-जाना बिना वीजा के हो सकेगा। हालांकि एलटीटीई ( लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम) के सक्रियता के वर्षों में यहां पर मछुआरों की कम आवाजाही रही। 2010 में संघर्ष खत्म होने के बाद श्रीलंका की सरकार ने फिर से इस पर अपना अधिकार बना लिया।

क्या है विवाद का विषय ?

1974 के समझौते को लेकर तमिलनाडु की राज्य सरकारें अपनी आपत्ति दर्ज कराती रहीं हैं। 1991 में तो तमिलनाडु विधानसभा में 1974 के समझौते के खिलाफ एक प्रस्ताव भी लाया गया था। संबंधित राज्य सरकार ने कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया और समय दर समय यह मांग भी करती रही कि कच्चातिवु द्वीप को फिर से भारत का हिस्सा बना लिया जाए। वहां कि स्थानीय सरकारों का कहना है कि यहां पर तमिल मछुआरों के अधिकार सुरक्षित नहीं हैं।

और पढ़ें-

आज के प्रेम विवाह का ही पौराणिक रूप है गंधर्व विवाह

हिन्दुस्तानी हस्तशिल्प का नायाब उदाहरण है कोल्हापुरी चप्पलें, जानें विस्तार से

आईये जानते हैं चांद की सोलहों कलाओं के बारे में…

Written By
टीम द हिन्दी

8 Comments

  • Just want to say your article is as surprising. The clearness in your post is just cool and i could assume you’re an expert on this subject. Well with your permission allow me to grab your RSS feed to keep updated with forthcoming post. Thanks a million and please continue the enjoyable work.

  • fantastic post.Never knew this, thanks for letting me know.

  • I really appreciate this post. I?¦ve been looking all over for this! Thank goodness I found it on Bing. You’ve made my day! Thank you again

  • It’s hard to find knowledgeable people on this topic, but you sound like you know what you’re talking about! Thanks

  • Along with every little thing which seems to be developing throughout this subject material, a significant percentage of opinions are quite stimulating. Nonetheless, I beg your pardon, because I do not subscribe to your whole theory, all be it radical none the less. It seems to everybody that your remarks are actually not entirely rationalized and in simple fact you are yourself not even completely certain of the point. In any case I did take pleasure in reading it.

  • I’m really enjoying the design and layout of your site. It’s a very easy on the eyes which makes it much more pleasant for me to come here and visit more often. Did you hire out a designer to create your theme? Exceptional work!

  • I was recommended this blog by my cousin. I am not sure whether this post is written by him as no one else know such detailed about my problem. You are wonderful! Thanks!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *