क्या है शिव के जीवन सूत्र और रसायन शास्त्र के इन 114 तत्वों में संबंध…

यदि यह कहा जाए कि भगवान शिव से बड़ा कोई वैज्ञानिक नहीं है, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव ने सप्त ऋषियों को जीवन सूत्र बताया। मान्यता है कि उसकी संख्या 114 है। आधुनिक विज्ञान में जब हम रसायन शास्त्र के पिरॉयडिक टेबल में मूल तत्वों की संख्या 114 ही बताई गई है। इन 114 तत्वों के आधार पर आधुनिक विज्ञान ने अब तक करोड़ों से अधिक यौगिक बना डाले हैं। जिसका लाभ पूरे मानव जीवन को हो रहा है।
सप्तर्षि (सप्त $ ऋषि) सात ऋषियों को कहते हैं जिनका उल्लेख वेद एवं अन्य हिन्दू ग्रन्थों में कई बार हुआ है। इनके नामों को लेकर हालांकि कुछ शंकाएं भी हैं।
वेदों के अनुसार, 1.वशिष्ठ, 2.विश्वामित्र, 3.कण्व , 4.भारद्वाज, 5.अत्रि, 6.वामदेव 7.शौनक हैं, तो विष्णु पुराण के अनुसार ये कहा गया हे
-वशिष्ठकाश्यपोऽत्रिर्जमदग्निस्सगौतमः।
विश्वामित्रभरद्वाजौ सप्त सप्तर्षयोभवन्।।
अर्थात् सातवें मन्वन्तर में सप्तऋषि इस प्रकार हैंः- वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र और भारद्वाज। इसके अलावा अन्य पुराणों के अनुसार सप्तऋषि की नामावली इस प्रकार हैः- ये क्रमशः क्रतु, पुलह, पुलस्त्य, अत्रि, अंगिरा, वसिष्ठ और मरीचि है।

महाभारत में सप्तर्षियों की दो नामावलियां मिलती हैं। एक नामावली में कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और वशिष्ठ के नाम आते हैं तो दूसरी नामावली के अनुसार सप्तर्षि – कश्यप, वशिष्ठ, मरीचि, अंगिरस, पुलस्त्य, पुलह और क्रतु हैं। कुछ पुराणों में कश्यप और मरीचि को एक माना गया है

भगवान शिव ने ही कहा था कि ‘कल्पना’ ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण है। हम जैसी कल्पना और विचार करते हैं, वैसे ही हो जाते हैं। शिव ने इस आधार पर ध्यान की कई विधियों का विकास किया। भगवान शिव दुनिया के सभी धर्मों का मूल हैं। शिव के दर्शन और जीवन की कहानी दुनिया के हर धर्म और उनके ग्रंथों में अलग-अलग रूपों में विद्यमान है।

एक इस्रायली वैज्ञानिक ने मानव मस्तिष्क पर कई वर्षों के शोध के बाद यह पाया कि मस्तिष्क में लाखों ऐसे ग्राहिकाएं हैं जो नशे को ग्रहण और महसूस करती हैं, जिन्हें कैनाबिस रिसेप्टर कहते हैं। फिर न्यूरोलॉजिस्टों ने पाया कि शरीर इन ग्राहिकाओं को संतुष्ट करने के लिए खुद एक नशीला रसायन विकसित कर सकता है।

जब उस वैज्ञानिक ने इस रसायन को एक सटीक नाम देना चाहा, तो उसने दुनिया भर के बहुत से ग्रंथ पढ़े। फिर उसे यह जान कर हैरानी हुई कि सिर्फ भारतीय ग्रंथों में आनंद का जिक्र मिलता है। इसलिए उसने उस रसायन को ‘आनंदामाइड’ नाम दिया।इसलिए आपको बस थोड़ा सा आनंदामाइड पैदा करना है क्योंकि आपके अंदर नशे की पूरी की पूरी फसल है। अगर आप उसे ठीक से उगाएं और उसका पोषण करें, तो आप हर समय नशे में चूर रह सकते हैं।

 

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