गुरुवार, 26 दिसंबर 2024
Close
टेप रिकॉर्डर टॉप स्टोरीज

नानाजी देशमुख: समाजसेवा के लिए जिन्होंने अपना सबकुछ छोड़ा

नानाजी देशमुख: समाजसेवा के लिए जिन्होंने अपना सबकुछ छोड़ा
  • PublishedAugust , 2019

टीम हिन्दी

जब तक व्यक्ति में स्व का भाव होता है, वह समाज और देश के लिए विशेष नहीं कर सकता है। स्व यानी अपना। स्वयं का। अपनों का। जिसने भी अपना स्व छोड़ा, उसने एक बड़ी लकीर खींची। ऐसे ही बड़ी लकीर खींची समाजसेवी नानाजी देशमुख ने, जिनके सामाजिक कार्यों के योगदान को देखते हुए भारत रत्न पुरस्कार प्रदान किया गया। नानाजी देशमुख एवं भूपेन हजारिका को यह सम्मान मरणोपरांत प्रदान किया गया।

बता दें कि प्रख्यात समाजसेवी नानाजी देशमुख का जन्म महाराष्ट्र के हिंगोली जिले में 11 अक्टूबर सन 1916 को हुआ था। संघ से जुड़े नानाजी देशमुख पूर्व में भारतीय जनसंघ से जुड़े थे। 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद उन्होंने मन्त्री पद स्वीकार नहीं किया और जीवन पर्यन्त दीनदयाल शोध संस्थान के अन्तर्गत चलने वाले विविध प्रकल्पों के विस्तार हेतु कार्य करते रहे। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने उन्हें राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया था। वाजपेयी के कार्यकाल में ही भारत सरकार ने उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य व ग्रामीण स्वालम्बन के क्षेत्र में अनुकरणीय योगदान के लिये पद्म विभूषण भी प्रदान किया।

नानाजी देशमुख की केंद्र में 1977 में जनता पार्टी की सरकार के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका थी। वह संगठन के आदमी थे तथा दोस्तों और चाहने वालों के बीच नानाजी के नाम से प्रसिद्ध थे। उन्होंने 1974 में जयप्रकाश नारायण के ‘संपूर्ण क्रांति’ का समर्थन कर भारतीय जनसंघ की राजनीतिक अस्पृश्यता को समाप्त कर दिया था।

तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल लागू करने तथा अन्य घटनाओं के बाद जनता पार्टी का गठन किया गया जिसने कांग्रेस से सत्ता छीन ली। इन क्षणों में नानाजी देशमुख की महत्वपूर्ण भूमिका थी। जेपी आंदोलन के दौरान नानाजी की सांगठनिक क्षमता और आपातकाल ने केंद्र की तत्कालीन मोरारजी देसाई सरकार में उन्हें मंत्री का पद दिया गया लेकिन उन्होंने इससे इंकार कर दिया। उत्तरप्रदेश के बलरामपुर से नानाजी ने लोकसभा का चुनाव जीता। इस दौरान कांग्रेस का राज्य में सफाया हो गया।

इससे पहले 1974 में बिहार संघर्ष आंदोलन के दौरान इस त्यागी व्यक्ति ने पटना में जेपी को पुलिस की लाठी से बचाया। वह जनता पार्टी के महासचिव बनाए गए। साठ साल के होने के बाद नानाजी ने उस समय राजनीति छोड़ दी जब उनका राजनीतिक करियर शिखर पर था। उन्होंने खुद को सामाजिक कार्यों की ओर मोड़ लिया जिसके प्रति वह जीवन के अंत काल तक समर्पित रहे। उन्होंने 2010 में उत्तर प्रदेश के चित्रकूट में अंतिम सांस ली थी।

Nanajee deshmukh

Written By
टीम द हिन्दी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *