भारतीय शौर्य की कहानी कहता है राष्ट्रीय युद्ध स्मारक
टीम हिन्दी
‘घर जाकर बताना कि उनके सुनहरे कल के लिए हमने आज अपना बलिदान दे दिया।’ दिल्ली में बने राष्ट्रीय युद्ध स्मारक का यही संदेश है. यह राष्ट्रीय युद्ध स्मारक करीब 22,600 जवानों के प्रति सम्मान का सूचक है, जिन्होंने आजादी के बाद से अनेक लड़ाइयों में देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी. 40 एकड़ में फैला यह स्मारक 176 करोड़ रुपये की लागत से तैयार किया गया है. छह भुजाओं (हेक्सागोन) वाले आकार में बने मेमोरियल के केंद्र में 15 मीटर ऊंचा स्मारक स्तंभ है, जिसके नीचे अखंड ज्योति जलती रहेगी.
राष्ट्रीय युद्ध स्मारक का मुख्य वास्तुकार वीबी डिजाइन लैब (WeBe Design Lab), चेन्नई के योगेश चंद्रहासन है. वेब डिज़ाइन लैब को वास्तुशिल्प डिजाइन की अवधारणा के लिए और परियोजना के निर्माण के समन्वय के लिए चुना गया था. इस हेतु एक वैश्विक डिजाइन प्रतियोगिता आयोजित की गई थी और परिणाम अप्रैल 2017 की शुरुआत में घोषित किया गया था और चेन्नई स्थित आर्किटेक्ट्स, वीबी डिजाइन लैब के प्रस्ताव को राष्ट्रीय युद्ध स्मारक के लिए विजेता घोषित किया गया था.
मेमोरियल में भित्ति चित्र, ग्राफिक पैनल, शहीदों के नाम और 21 परमवीर चक्र विजेताओं की मूर्तियां भी लगाई गई हैं. साथ ही स्मारक को चार चक्र पर केंद्रित किया गया है, जिसे अमर चक्र, वीरता चक्र, त्याग चक्र, रक्षक चक्र नाम दिया गया है. इसमें थल सेना, वायुसेना और नौसेना के शहीद जवानों को श्रद्धांजलि दी गई है. शहीदों के नाम दीवार की ईटों में उभारकर लिखे गए हैं. स्मारक का निचला भाग अमर जवान ज्योति जैसा रखा गया है. स्मारक के डिजाइन में सैनिकों के जन्म से लेकर शहादत तक का जिक्र है. ऐसी गैलरी भी है जहां दीवारों पर सैनिकों की बहादुरी को प्रदर्शित किया गया है.
आधिकारिक जानकारी के मुताबिक, इंडिया गेट के पास 40 एकड़ में बने इस युद्ध स्मारक की लागत 176 करोड़ रुपये आई है और यह रिकार्ड एक साल में बनकर पूरा हुआ है. इसकी 16 दीवारों पर 25,942 योद्धाओं का जिक्र किया गया है. ग्रेनाइट पत्थरों पर योद्धाओं के नाम, रैंक व रेजिमेंट का उल्लेख किया गया है. इन्होंने 1962 के भारत-चीन युद्ध, 1947, 1965, 1971 व 1999 के भारत-पाकिस्तान युद्ध तथा श्रीलंका में शांति बहाल कराने के दौरान अपना सर्वोच्च बलिदान दिया. प्रधानमंत्री ने युद्ध स्मारक का जिक्र करते हुए कहा था कि इसका न होना उन्हें अक्सर दुखी और आश्चर्यचकित करता था.
बता दें कि दुनिया के बड़े देशों में अब तक भारत ही था, जहां सैनिकों के बलिदान को याद करने के लिए युद्ध स्मारक नहीं था. इस स्मारक के साथ ही यह कमी पूरी हो गई है. इससे पहले इंडिया गेट वॉर मेमोरियल बना था. यह 1931 में पहले विश्व युद्ध में हिस्सा लेने वाले भारतीय सैनिकों के सम्मान में इसे बनाया गया था.
प्रथम विश्व युद्ध और अफगान अभियान में करीब 84,000 सैनिक शहीद हुए थे. उनकी याद में अंग्रेजों ने इंडिया गेट बनवाया था. बाद में 1971 में अमर जवान ज्योति का निर्माण हुआ। अमर जवान ज्योति 1971 के भारत-पाक युद्ध में बांग्लादेश की आजादी में शहीद हुए 3,843 सैनिकों को समर्पित है. ये दोनों स्मारक कुछ खास अवधि के शहीदों को समर्पित है. आजादी के बाद भी कई युद्धों और अभियानों में सैनिकों ने त्याग और बलिदान की मिसाल कायम की है. उनकी कुर्बानी को याद करने और सम्मान देने के लिए एक राष्ट्रीय स्मारक की जरूरत महसूस की गई. इसको बनाने की मांग तो करीब 60 साल पहले उठी थी, लेकिन इसे अंतिम मंजूरी साल 2015 में मोदी सरकार ने दी.
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