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संस्कृति

मन को आनंदित करता सितार

मन को आनंदित करता सितार
  • PublishedAugust , 2019

टीम हिन्दी

सितार परंपरिक वाद्य होने के साथ ही सबसे अधिक लोकप्रिय है और सितार ऐसा वाद्य यंत्र है जिसने पूरी दुनिया में हिन्दुस्तान का नाम लोकप्रिय किया. सितार को भारत का राष्ट्रीय वाद्य यंत्र होने का गौरव भी प्राप्त है. सितार बहुआयामी साज होने के साथ ही एक ऐसा वाद्य यंत्र है जिसके ज़रिये भावनाओं को प्रकट किया जाता हैं. सितार के जन्म के विषय में विद्वानों के अनेक मत हैं. अभी तक किसी भी मत के पक्ष में कोई ठोस प्रमाण नहीं प्राप्त हो सका हैं. कुछ विद्वानों के मतानुसार इसका निर्माण वीणा के एक प्रकार के आधार पर हुआ है. भारतीयता को महत्त्व देने वाले भारतीय विद्वान इस मत को सहज में ही मान लेते हैं.

वीणा एक प्राचीन वाद्य-यंत्र है, जो मां सरस्वती एवं देवर्षि नारद के कर-कमलों को सुशोभित करती है. सितार अफगानी, ईरानी रबाब का समुन्नत भारतीय संस्करण है, जिसका श्रेय अमीर खुसरो को जाता है. वीणा सुर-ध्वनियों के लिए एक प्राचीन भारतीय वाद्ययंत्र है. इसका प्राचीनतम रूप एक-तंत्री वीणा है. रूद्र वीणा, विचित्र वीणा, मोहन वीणा, रंजन वीणा आदि इसके प्रकार हैं. इसमें आमतौर पर चार तारों का प्रयोग होता है. उनकी लम्बाई में कोई विभाजन नहीं होता.

दूसरे मतानुसार इसका आविष्कार 14वीं शताब्दी में अलाउद्दीन ख़िलजी के दरबारी हजरत अमीर ख़ुसरो ने मध्यमादि वीणा पर 3 तार चढ़ाकर सितार को जन्म दिया. उस समय उसका नाम सहतार रखा गया. फ़ारसी में ‘सह’ का अर्थ 3 होता हैं. धीरे-धीरे सहतार बिगड़ते-बिगड़ते सितार हो गया और 3 तार के स्थान पर 7 तार अथवा 8 तार लगाये जाने लगे.

तीसरे मतानुसार सितार पूर्णतया अभारतीय वाद्य है. यह वाद्य परशिया से भारत में आया. एक तारा, दो तारा, सहतारा, चहरतारा, पचतारा क्रमश: 1, 2, 3, 4 अथवा 5 तार वाले वाद्य आज भी परशिया के लोक-संगीत में व्यवह्रत हैं. सम्भव है कि इस वाद्य के प्रचार में अमीर ख़ुसरो का विशेष हाथ रहा हो. हिन्दू तथा मुसलमान, इन दोनों के श्रेष्ठ वाद्य यंत्रों के मिश्रण से सितार की उत्पत्ति मानी जाती है.

आधुनिक काल में सितार के तीन घराने अथवा शैलियाँ इस के वैविध्य को प्रकाशित करते रहे हैं. बाबा अलाउद्दीन खाँ द्वारा दी गयी तन्त्रकारी शैली जिसे पण्डित रविशंकर निखिल बैनर्जी ने अपनाया दरअसल सेनी घराने की शैली का परिष्कार थी. अपने बाबा द्वारा स्थापित इमदादखानी शैली को मधुरता और कर्णप्रियता से पुष्ट किया उस्ताद विलायत खाँ ने. पूर्ण रूप से तन्त्री वाद्यों हेतु ही वादन शैली मिश्रबानी का निर्माण डॉ लालमणि मिश्र ने किया तथा सैंकडों रागों में हजारों बन्दिशों का निर्माण किया। ऐसी 300 बन्दिशों का संग्रह वर्ष 2007 में प्रकाशित हुआ है.

सितार से कुछ बड़ा वाद्य सुर-बहार आज भी प्रयोग में है किन्तु सितार से अधिक लोकप्रिय कोई भी वाद्य नहीं है. इसकी ध्वनि को अन्य स्वरूप के वाद्य में उतारने की कई कोशिशें की गई, किन्तु ढांचे में निहित तन्त्री खिंचाव एवं ध्वनि परिमार्जन के कारण ठीक वैसा ही माधुर्य प्राप्त नहीं किया जा सका. गिटार की वादन शैली से सितार समान स्वर उत्पन्न करने की सम्भावना रन्जन वीणा में कही जाती है किन्तु सितार जैसे प्रहार, अन्गुली से खींची मींड की व्यवस्था न हो पाने के कारण सितार जैसी ध्वनि नहीं उत्पन्न होती. मीराबाई कृष्ण भजन में सितार का प्रयोग करती थी.

सितार वादक भारतीय वाद्यों में से एक सितार बजाने वाले को कहा जाता है. सितार को भारत का ‘राष्ट्रीय वाद्य यंत्र’ होने का गौरव भी प्राप्त है. भारत के प्रसिद्ध सितार वादकों के नाम निम्नलिखित हैं-
पंडित रविशंकर
उस्ताद लियाकत ख़ाँ
शुजात ख़ान
पंडित उमा शंकर मिश्रा

Mann ko anandit krta sitar

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टीम द हिन्दी

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