दिल्ली : सात बार उजड़ी, फिर बसी हूं मैं

मैं दिल्ली हूँ, आज मैं जैसी दिख रही हूँ वैसी कभी रही नहीं. कई बार मुझे बसाया गया और उजाड़ा गया. भारत की आज़ादी से पहले और आज़ादी के बाद मैं ही सभी राजाओं की पहली पसंद रही हूँ, सभी मुझ पर ही शासन करना चाहते हैं, इस बात का मुझे अभिमान भी है.
अभी कुछ दिनों पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने लोगों से कहा कि मेरी दिल्ली मैं ही सवारूँ. उनकी ये बातें सुनकर मुझे अपना अतीत याद आने लगा. किस तरह राजाओं ने मुझे संवारा और फिर उजाड़ दिया. आखिर क्या है मुझ में जो सभी की आँखों का तारा हूँ मैं.
आज दिल्ली में सड़कों का जाल है, मेट्रो है, बड़े बड़े फ्लाईओवर है, एक अच्छे शहर में मिलने वाले सभी सुविधाएँ हैं, जिसे देखकर लोगों को यहाँ आने का मन करने लगता है. पर जैसी आज मैं दिख रही हूँ, क्या मैं पहले भी वैसी ही थी.
मेरा सफ़र आज से लगभग 3000 साल पहले शुरू हुआ था. राजाओं ने मुझे अपनी राजधानी के रूप संवारा, सजाया. मुझे आठ बार बसाया तो सात बार उजाड़ा गया. मेरा सफ़र इंद्रप्रस्थ से लेकर लालकोट, महरौली, दीनपनाह से होते हुए शाहजहानाबाद और नई दिल्ली तक कैसे पंहुचा, आइये मैं अपनी कहानी सुनाती हूँ.
मेरा उल्लेख सबसे पहले महाभारत में हुआ तब मैं इंद्रप्रस्थ के नाम से जानी जाती थी. मुझे पांडवो ने अपनी राजधानी के रूप में बसाया. ये भी कहा जाता है कि सबसे पहले मेरा नाम राजा धिलू ने मुझे दिल्लिका दिया. तोमर वंश के राजा अनंगपाल तोमर द्रितीय (बी.सी 786) ने लालकोट नाम दिया था.
यही इन्द्रप्रस्थ लालकोट, राय पिथोड़ा, फिरोजाबाद जैसे नामों से होते हुए मैं दिल्ली में बदल गयी. कहा जाता है कि पृथ्वीराज चौहान तृतीय, जो की अंतिम हिन्दू राजा थे, दिल्ली पर राज किया. पृथ्वीराज चौहान तृतीय ने लालकोट का विस्तार कर किला राय पिथोड़ा बनवाया.
मोहम्मद गोरी ने पृथ्वी राज चौहान को हराने के बाद दिल्ली की कमान अपने गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक को सौंप दिया. 1206 ईस्वी में गोरी की मृत्यु के बाद, क़ुतुबुद्दीन ने अपने आप को भारत का शासक घोषित कर दिया. क़ुतुबुद्दीन ने महरौली नामक शहर बसाया जिसे आज क़ुतुब काम्प्लेक्स से जानते है. रजिया सुलतान दिल्ली सल्तनत की आखरी शासक रही. इसके बाद अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली सल्तनत का शासक बन गया और सीरी नाम की नई राजधानी के निर्माण का एलान किया. यह दिल्ली का तीसरा शहर बन गया और मैं महरौली से सीरी में तबदील हो गयी.
1320 ईस्वी में तुगलक साम्राज्य दिल्ली में आ बसे और गयासुद्दीन तुगलक ने तुगलकाबाद बसाया. इसी दौरान तुगलकों ने एक और शहर बसाया जिसे फिरोजाबाद/फिरोजशाह नाम दिया गया और दिल्ली का यह पांचवा शहर कहलाया. तुगलकों के बाद 1500 शताब्दी में मुगलों ने मुझ पर राज किया. पहले मुग़ल शासक हुमायूँ ने दिल्ली का छठा शहर दिनपनाह नाम से बनाया.
1539 में शेरशाह सूरी ने हुमायूँ को हराकर दिनपनाह को शेरगढ़ बना दिया. 1545 शेरशाह सूरी की मृत्यु के बाद हुमायूँ ने दिल्ली को फिर से जीत लिया. हुमायूँ के बाद शाहजहाँ ने 1638 में शाहजहानाबाद की नीव रखी. यह दिल्ली का सातवां शहर बना. जिसे हम आज पुरानी दिल्ली के नाम से जानते हैं.
लाल किला, जमा मस्जिद, चांदनी चौक शाहजहाँ द्वरा बनवाए गए थे. शाहजहाँ ने शहर की शुरक्षा के लिए शहर के चारो तरफ एक दिवार बनवाई जिसमे कुल 14 गेट थे. आज भी दिवार का बचा हुए कुछ हिस्सा और गेट पुरानी दिल्ली में देखे जा सकते हैं, दिल्ली गेट, लाहोरी गेट मौजूद है.
ब्रिटिशों द्वरा आखरी मुग़ल शासक बहादुरशाह ज़फर को गिरफ्तार कर रंगून ले गये और मुग़ल साम्राज्य समाप्त हो गया. ब्रिटिश दिल्ली के नए शासक बन गए. 1911 में जार्ज पंचम ने दिल्ली को भारत की नई राजधानी बनाने का एलान किया और नई दिल्ली बनाने की घोषणा की. एडविन लुटियंस और हबार्ड बेकर को नयी राजधानी बनाने का जिमा सौंपा गया. इन्होने कई शानदार इमारतें बनाई जिनमे राष्ट्रपति भवन, इंडिया गेट, और संसद भवन शामिल है. दिल्ली का दिल कहे जाने वाले कनॉट प्लेस की भी रचना लुटियंस ने ही की थी. इसे आज हम नई दिल्ली और लुटियंस दिल्ली के नाम से जानते है.
Dilli sat baar ujdi hu fir basi hu mai
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