नवरात्रों में माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा के लिए कलश स्थापना क्यों है आवश्यक?
नवरात्र यानि नौ दिनों का उत्सव। उत्सव माँ दुर्गा की शक्ति का, उत्सव माँ आदि की भक्ति का! नौ रात्रियाँ माँ दुर्गा के नौ रूपों से सम्बंधित हैं। बुधवार 25 मार्च 2020 से चैत्र नवरात्रि का आरंभ हो रहा है। चैत्र मास के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवमी तक घर-घर में दुर्गा माँ की पूजा अर्चना होती है! माँ दुर्गा के नौ रूप निम्न हैं!
प्रथमं शैलपुत्रीति द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्॥
पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनी तथा।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्॥
नवमं सिद्धिदा प्रोक्ता नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना॥
नवरात्रि के पहले दिन घट (कलश) स्थापना से पूजा की विधिवत शुरुवात होती है। हिन्दू शास्त्रों में घट सभी मांगलिक कार्यों में प्रयोग होता है। घट स्थापना के साथ ही अखंड ज्योति प्रज्ज्वलित की जाती है। यह ध्यान रखा जाता है कि अखंड ज्योति नौ दिनों तक जलती रहे। इन नौ दिनों व्रत रखने का भी प्रावधान है! कहा जाता है कि नवरात्रि में व्रत लेने वाले को सुख शान्ति और सम्पदा की प्राप्ति होती है।
कलश स्थापना का समय: इस वर्ष घट स्थापना प्रातः 6 बजकर 23 मिनट से 7 बजकर 14 मिनट तक कर सकते हैं। घट स्थापना के साथ ही दुर्गा सप्तसती का पाठ करना चाहिए! दुर्गा सप्तशती के सभी अध्यायों का अपना-अपना महत्व है। दुर्गासप्ती का पाठ बिना फल की आशा के भक्तिभाव से किया जाए तो सभी कष्टों का निवारण होता है।
कलश स्थापना करने का कारण- कलश स्थापना से संबन्धित हमारे पुराणों में एक मान्यता है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार कलश चारो वेदों का संगम है जिसके मुख को भगवान विष्णु, गर्दन को शिव तथा आधार में सृष्टि के रचियता ब्रह्मा जी का वास माना जाता है। घड़े में भरा जल धरती के अपार जलस्रोत को दर्शाता है तथा बीच के भाग में समस्त देवी देवताओं के वास को चिन्हित किया गया है। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को स्वयं में निहित करता है कलश! कलश की स्थापना से पहले उस स्थान को गंगा जल से शुद्ध कर सभी देवी -देवताओं को आमंत्रित किया जाता है।
कलश को पांच तरह के पत्तों से सजाया जाता है! ये पांच पत्ते प्रक्रति के मूल पंचतत्वों को निर्देशित करते हैं। कलश में खड़ी हल्दी की गांठ, दूब ,जौ, सुपारी, तिल आदि रखा जाता है। कलश को स्थापित करने के लिए बालू की वेदी बनाई जाती है और उसमें जौ बोये जाते हैं। माँ दुर्गा की तस्वीर अथवा मूर्ति को पूजा स्थल के बीचों-बीच स्थापित करते है और माँ का श्रृंगार करते हैं। नवें दिन तक जौ उग जाती है। नवें दिन जौ को काटकर माँ दुर्गा की विधिवट पूजा की जाती है।
नवरात्रों में वांछित फल की प्राप्ति के लिए कुछ लोग पूरे नौ दिन तक उपवास भी रखते हैं। नवमी के दिन नौ कन्याओं(दुर्गा के नौ स्वरूप) का विधिविधान से पूजन कर प्रसाद खिलाया जाता है! कई स्थानों पर कन्याओं के साथ एक बालक को भी भोग लगाया जाता है! यह बालक भैरव का रूप माना जाता है क्योंकि माता की पूजा बिना भैरव पूजन के अपूर्ण मानी जाती है।
Navratro me kalash sathapna kyu hai jaruri