फ़िजी : यहाँ लोगों के दिलों में बसता है भारत
जब भी हम दूसरे देश में अपने देश की भाषा सुनते हैं, तो दिल को सुकून मिलता है. सुकून इसलिए क्योंकि पराए देश में कोई अपना मिल जाए तो अपने देश से दूर रहने का एहसास ही नहीं होता. भारतीय हर देश, हर द्विप पर मिल जाते हैं. दूसरे देश में अपने देश की संस्कृति और सभ्यता देख सिर गर्व से उठ जाता है. आखिर भारत है ही इतना प्यारा कि सब इसके रंग में रंग जाते हैं. आइये कुछ ऐसे देशों के बारे में जानते हैं, जहाँ भारतीय संस्कृति की झलक आपको मिल सकती है.
फ़िजी
फ़िजी, प्रशांत महासागर में स्थित ये द्वीप दक्षिण-पश्चिमी दिशा से होनोलुलु और उत्तरी दिशा से न्यूज़ीलैण्ड से घिरा हुआ है. फ़िजी में 333 छोटे-छोटे द्विप बसते हैं, जिसमें से दो प्रमुख द्विप हैं; विती लेनु और वनुआ लेनु. ये उन द्विपों में से एक है, जहाँ एक दूसरा भारत बसता है. विती लेनु पर ज्यादा भारतीयों ने अपना बसेरा बना रखा है. यहाँ की 37% जनसंख्या भारतीयों की है. 2007 के जनगणना के अनुसार फ़िजी में 837,271 पूरी आबादी थी, जिसमें 475,739 लोग भारतीय थे. तो हुआ ना विदेश में बसा अपना देश भारत.
भाषा
यहाँ की तीन आधिकारिक भाषाएँ है, इंग्लिश, फ़िजी और हिंदी. ये हर भारतीय के लिए बहुत गर्व की बात है कि हिंदी किसी दूसरे देश की औपचारिक भाषा है. यहाँ के हिंदी को फ़िजी हिंदी, फीजियन बात और फीजियन हिन्दुस्तानी भी कहते हैं. ये फिजी, हिंदी, अवधी और भोजपुरी भाषा से निकली है. बहुत सारे ऐसे शब्द भी हैं, जो फीजियन और इंग्लिश से ली गयी है. इंडो-फ़िजी यहाँ फ़िजी हिन्दी में ही बात करते हैं. इससे अपनी भाषा और देश से जुड़े रहते हैं.
इंडो-फ़िजी
इंडो-फ़िजी वो फ़िजी हैं, जो भारत से फ़िजी लाये गए थे और वहीँ बस गए. जब वो फ़िजी पहुंचे तो अपनी सभ्यता और संस्कृति को साथ में लेकर गए. फ़िजी में उन्होंने हिन्दू और मुस्लमान दोनों धर्म की स्थापना की. इंडो-फ़िजी दक्षिणी एशियन प्रवासी हैं. भारत के लोग जहाँ भी जाते हैं, वहां अपनी सभ्यता और संस्कृति को फैलाने का काम हैं. फ़िजी में दिवाली, होली को धूमधाम से मनाते हैं. शादियाँ भी बिल्कुल हिन्दू रीती-रिवाज़ के साथ करते हैं. मंदिरों में जाकर पूजा करते हैं. फ़िजी के कानून के अनुसार, कोई भी परदेशी असली फीजियन गाँव में नहीं रह सकता इसलिए यहाँ लाये गए लोगों ने अपने खुद की बस्ती बसा ली या कुछ लोग समुद्री तट के किनारे जाकर बस गए.
इतिहास
जब फ़िजी और भारत पर अंग्रेजों ने कब्ज़ा किया, तो जबरन भारतीयों को फ़िजी भेजने लगे. वहां मजदूर बनाकर भेजा गया था. 15 मई 1879 में पहली बार ब्रिटिश स्टीमर, लेओनिदास ने 464 भारतीय को फ़िजी लाया था, ताकि वो यहाँ के कोलोनियल सुगर रिफाइनरी में काम करे. ये कंपनी ऑस्ट्रेलियाई सुगर रिफाइनरी की कंपनी थी. भारतीय मूल के लोगों को यहाँ मजदूरी करने के लिए मजबूर किया गया था. ये मजदूर ज्यादातर बिहार, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और उत्तर पश्चिमी सीमांत के थे. ये सिलसिला 1916 में थमा, जब गाँधीजी ने ब्रिटेन से विनती की कि इसको रोक दिया जाये.
अब फीजी में बसे भारतियों ने अपनी खुद की दुनिया बना ली है, जिसमे वो बहुत हंसी-खुशी से जी रहे हैं. हम भारतीयों में एक बहुत खास बात है, चाहे कोई अपनाये या नहीं हम हर किसी को अपना लेते हैं. अपनी सभ्यता और संस्कृति को वहां अपनी जगह बनाए देख दिल को खुशी मिलती है.
Fiji yaha logo ke dil me basta hai bharat