भोलेनाथ की नगरी तेरे कितने नाम ?
बाबा विश्वनाथ का शहर जो हर हर महादेव से गूंजता है, जहां शिव की जटाओं से निकली गंगा की आरती हर शाम होती है. केवल यहीं उत्तरवाहिणी गंगा है. हर गली में महादेव का नाम भजता है, जहां प्रसाद में भांग बंटता है. जहां संकट हरने को खुद संकटमोचन आते है. जहां मोक्ष की प्राप्ति होती है. 88 घाट जिसकी शोभा बढ़ाते हैं, वह है काशी नरेश की नगरी काशी. 18 पुराणों में से एक स्कंद पुराण में काशीखण्ड के नाम से एक अध्याय है. इसे प्राचीन सप्त पुरियों में से एक माना गया है. इसके बारह प्रसिद्ध नाम हैं. ये नाम इस प्रकार हैं – काशी, वाराणसी, अविमुक्त क्षेत्र, आनंदकानन, महाश्मशान, रुद्रावास, काशिका, तपस्थली, मुक्तिभूमि, शिवपुरी, त्रिपुरारि राज नगरी और विश्वनाथ नगरी. महादेव का यह नगर विश्व का सबसे पुराना शहर माना जाता है. कहते हैं जो एक बार इस शहर में आता है, वह बाबा विश्वनाथ की मर्जी से आता है.
काशी
काशी का अर्थ है ‘उजाले का शहर’. काशी नाम काशा से लिया गया है, जिसका मतलब होता है ‘प्रकाश’. ऋग्वेद के समय से चला आ रहा यह नाम यहाँ के पहले राजा देवोदास से भी पहले से है. कहते हैं भगवान शिव ने जब पार्वती से शादी की थी, तो उनको अपना शहर छोड़ कर जाना पड़ा था. तब ब्रह्मा ने इस शहर की जिम्मेदारी तप में लीन रिपुंजय को दी, जिसका बाद में नाम देवोदास पड़ा. देवोदास ने ब्रह्मा से कहा कि मैं इस शहर की देख-भाल करुंगा, लेकिन मेरे शहर में कोई भी देवी-देवता नहीं आएंगेे. ब्रह्मा ने इस पर हामी भर दी.
कुछ समय के बाद, जब भगवन शिव वापस आना चाहे, तो देवोदास को दिए वरदान के कारण शिव काशी में प्रवेश नहीं कर पाए. बहुत कोशिशों के बाद, देवोदास ने देवी-देवताओं को आने की अनुमति दी. तब से ले कर आज तक यहां हर देवी-देवता का वास है.
बनारस
बनारसी से निकला बनारस. पाली में लिखी जातक कहानियों में काशी को बनारसी कह कर बताया गया है. कहा जाता है राजा बानर के नाम से इसकी शुरुआत हुई, जिन्होंने बनारस को तीर्थ स्थल के रूप में स्थापित किया था. मुगल और अंग्रेजी शासन के दौरान बनारस को बेनारस कह कर बुलाया जाता था. जब मुगल शासक आए, तो उन्होंने यहां के मंदिरों को तहस-नहस कर दिया. अकबर के शासन के दौरान बनारस ने थोड़ी चैन की सांस ली. लेकिन जब औरंगजेब आया, तो उसने फिर बनारस को बर्बाद करने की कोई कसर नहीं छोड़ी. मराठा साम्राज्य की स्थापना के बाद इसे फिर से बनवाया गया. अंग्रेजों ने बनारस को व्यापर का शहर बनाया.
वाराणसी
यह नाम बनारस को भारत की आजादी के बाद मिला. 1956 में आधिकारिक रूप से बनारस को वाराणसी नाम दिया गया. दो नदियों के नाम से मिल कर बनी है वाराणसी. वरुणा और अस्सी. इन दो नदियों के बीच स्थित है शिव की नगरी. इन नदियों के बारे में वामन पुराण में बताया गया है. वरुणा गंगा की ही एक सहायक नदी है और अस्सी अब एक पतले नाले जैसी हो गई.
इसके साथ ही अविमुक्तका, आनंदकानन, महास्मासना, सुदार्सना, ब्रह्म वेदा, सुरंधना, रम्या और रुद्रवासा ये कुछ और नाम है, जिससे वाराणसी को जाना जाता है. एशिया का सबसे बड़ा विश्वविद्यायलय यहीं है. पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने 1916 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की थी.
यहां उस्ताद बिस्मिल्लाह खान जैसे दिग्गज पैदा हुए थे. योग की प्राचीन कहानिया यहां मिलती है और भारत के सबसे ज्यादा घूमे जाने वाला शहरों में से यह एक है. साहित्य और संस्कृति से भरा ये शहर हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करता है. अब जिस नाम से बुलाओ ये काशी तो रहेगी भोलेनाथ की ही और यहां के लोग कहेंगे ‘मैं पारस हूं, मैं जिंदा शहर बनारस हूं.’
Bholeynath ki nagri tere kitne kaam