विश्व भर में पहुँच है हमारी हिन्दी की
यदि यह कहा जाए कि 21वीं विज्ञान एवं तकनीक के सहारे पूरी दुनिया एक वैश्विक गाँव में तब्दील हो रही है और स्थलीय व भौगोलिक दूरियां अपनी अर्थवत्ता खो रहीं हैं, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. वर्तमान विश्व व्यवस्था आर्थिक और व्यापारिक आधार पर ध्रुवीकरण पुनर्संघटन की प्रक्रिया से गुजर रही है. ऐसे में हर उस राष्ट्र को अपनी संस्कृति, साहित्य और सभ्यता से बेहतर सरोकार बनाना होगा, जिसे वैश्विक मंच पर अपनी दमदार उपस्थिति दिखानी है. हाल के कुछेक वर्षों में राजनीतिक और सामरिक रूप से भारत ने नए आयाम गढ़े हैं. इसलिए कला-संस्कृति, समाज और साहित्य आदि से जुड़े लोगों के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वे अपनी सशक्त उपस्थिति बनाएं.
इन्हीं कोशिशों को आत्मसात करने की एक प्रक्रिया है द हिन्दी. हिन्दी बोलने मात्र से भारत का बोध होता है. विश्व के किसी भी कोने में कोई हिन्दी बोलते और सुनते नजर आएंगे, तो उनका सरोकार भारत से ही होगा. भारतीयता को हिन्दी के माध्यम से वैश्विक स्तर पर पहुंचाने का बीड़ा उठाया है युवा उद्यमी तरुण शर्मा ने. द हिन्दी ने पहले की तय कर लिया था किघटना प्रधान खबरों की बात नहीं करेंगे. हम भारतीय सभ्यता, संस्कृति और साहित्य की बात करेंगे. हम अपने लोक की बात करेंगे. घर के बड़े-बुजुर्ग कहा करते हैं कि जो इस लोक की बात नहीं करता, उसका परलोक में भी स्थान नहीं है. इसलिए हमने लोक की बात करने प्रण लिया.
द हिन्दी के प्रबंध संपादक तरुण शर्मा का कहना है कि हिन्दी हमारी मातृभाषा है. मनुष्य की मातृभाषा उतनी ही महत्व रखती है, जितनी कि उसकी माता और मातृभूमि रखती है. एक माता जन्म देती है, दूसरी खेलने-कूदने, विचरण करने और सांसारिक जीवन निर्वाह के लिए स्थान देती है. तीसरी, मनोविचारों और मनोगत भावों को दूसरों पर प्रकट करने की शक्ति देकर मनुष्य जीवन को सुखमय बनाती है.
असल में, यदि हम विगत तीन शताब्दियों पर विचार करें, तो कई रोचक निष्कर्ष पा सकते हैं. यदि अठारहवीं सदी आस्ट्रिया और हंगरी के वर्चस्व की रही है, तो उन्नीसवीं सदी ब्रिटेन और जर्मनी के वर्चस्व का साक्ष्य देती है. इसी तरह बीसवीं सदी अमेरिका एवं सोवियत संघ के वर्चस्व के रूप में विश्व नियति का निदर्शन करने वाली रही है. आज स्थिति यह है कि लगभग विश्व समुदाय दबी जुबान से ही सही, यह कहने लगा है कि इक्कीसवीं सदी भारत और चीन की होगी. आज भारत और चीन विश्व की सबसे तीव्र गति से उभरने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से हैं तथा विश्व स्तर पर इनकी स्वीकार्यता और महत्ता स्वतः बढ़ रही है. अपनी कार्य निपुणता तथा निवेश एवं उत्पादन के समीकरण की प्रबल संभावना को देखते हुए ही भारत और चीन को निकट भविष्य की विश्व शक्ति के रूप में देखा जाने लगा है.
जाहिर है कि जब किसी राष्ट्र को विश्व बिरादरी अपेक्षाकृत ज्यादा महत्त्व और स्वीकृति देती है तथा उसके प्रति अपनी निर्भरता में वृद्धि पाती है, तो उस राष्ट्र की तमाम चीजें स्वतः महत्त्वपूर्ण बन जाती हैं. ऐसी स्थिति में भारत की विकासमान अंतरराष्ट्रीय हैसियत हिंदी के लिए वरदान जैसा है. यह सच है कि वर्तमान वैश्विक परिवेश में भारत की बढ़ती उपस्थिति हिंदी की हैसियत का भी उन्नयन कर रही है. आज हिंदी राष्ट्रभाषा की गंगा से विश्वभाषा का गंगासागर बनने की प्रक्रिया में है.
असल में, आज भारत आधुनिकीकरण की प्रक्रिया व प्रभाव से गुजर रहा है और इस प्रक्रिया में हिन्दी को भी साथ में चलना होगा. नए ज्ञान – विज्ञान को अभिव्यक्ति देने की प्रक्रिया में किया जाने वाला भाषिक परिवर्तन ही भाषा का आधुनिकीकरण है. वैश्विकरण, उदारीकरण एवं निजीकरण के वर्तमान दौर में हिन्दी को एक व्यवसायिक भाषा के रुप में विकसित करना होगा. वैज्ञानिक, तकनिकी, औधोगिक एवं ज्ञान – विज्ञान के तमाम क्षेत्रों में साहित्य – निर्माण का कार्य आरंभ करना होगा. हिन्दी को अब केवल साहित्य की भाषा न बनाकर आधुनिकीकरण की नई – नई चुनौतियों को स्वीकार करते हुए अधुनातन विषयों को सरल ढंग से समझने और समझाने के माध्यम की भाषा बनाना अनिवार्य हो गया है. आधुनिकीकरण के इस युग में विज्ञान चिकित्सा, तकनिकी, कृषि, जनसंचार, व्यापार – वाणिज्य, याता-यात, औधोगिक प्रतिष्ठान, वित्तीय प्रतिष्ठान, न्यायालय, प्रशासनिक कार्यालय आदि क्षेत्रों के कार्य – व्यवहार के उपयुक्त विविध भाषिक रुपों का विकास करना होगा. ज्ञान – विज्ञान के क्षेत्र में जो अतिशीघ्र और अद्भुत विकास हो रहा है, वह जनसामन्य तक शीघ्रता से नहीं पहुंच पाता है. इसे पहुंचाने का दायित्व हिन्दी भाषा पर है.
वैसे देखा जाए तो यह स्पष्ट होगा कि जिस भाषा का शब्द भंडार जितना अधिक होगा, उस भाषा में जीवंतता उतनी अधिक लक्षित होगी. शब्द भाषा की ताजगी है. शब्द विन्यास से भाषा में लालित्य उत्पन्न होता है, जिससे संदेश देने में सुविधा होती है. यही संदेश मानव जीवन के बीच एक सोच पैदा करता है तथा उसकी पहचान बनाता है. चिन्तन मनन के क्षेत्र में भाषा का महत्व सबसे अधिक होता है. उल्लेखनीय है कि किसी भी भाषा का साहित्य उस देश के अनुकुल होता है. इस संदर्भ मे आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी ने लिखा है कि किसी भी देश के साहित्य का संबंध उस देश की संस्कृति परम्परा से होता है. भाषा में जो रोचकता और शब्दो में जो सौंदर्य का भाव रहता है, वह उस देश की प्रकृति के अनुसार होता है.
हमें यह कहते हुए अपार प्रसन्नता हो रही है कि द हिन्दी पूरी तरह से भारतीय परंपरा और लोकसंस्कृति के रंग में है.
Vishvbhar mei pahuch hai humari hindi ki