बुधवार, 25 दिसंबर 2024
Close
टेप रिकॉर्डर टॉप स्टोरीज

सत्यजीत रे : भारतीय सिनेमा का चितेरा

सत्यजीत रे : भारतीय सिनेमा का चितेरा
  • PublishedOctober , 2019

टीम हिन्दी

बहुत कम लोग ऐसे होते हैं, जिनके काम करने से उस क्षेत्र में नए आयाम स्थापित होते हैं. बॉलीवुड की दुनिया में सत्यजीत रे एक ऐसा ही नाम है, जिन्होंने एक नया ट्रेंड बनाया. सत्यजीत रे ने आर्ट सिनेमा को जिस अंदाज में रजत पटल पर उजागर किया उस से देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया ने उनकी प्रतिभा का लोहा माना. सत्यजीत रे भारतीय सिनेमा के एकमात्र ऐसे कलाकार हैं जनकी झोली में पद्मश्री से लेकर पद्म विभूषण तक और ऑस्कर अवॉर्ड से लेकर दादासाहेब फाल्के पुरस्कार तक हैं. इसके अलावा 32 राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों से भी उन्हें नवाजा जा चुका है.

कैलीग्राफी में भी सत्यजीत रे बहुत कुशल थे. बंगाली और अंग्रेजी उन्होंने कई टाइपफेस डिजाइन किए थे. रे रोमन और रे बिजार नाम के उनके दो अंग्रेजी टाइपफेसों ने तो 1971 में एक अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार भी जीता था. अपने अतुलनीय योगदान के लिए सत्यजीत रे को कई प्रतिष्ठित सम्मान मिले. 1978 में बर्लिन फिल्म फेस्टिवल की संचालक समिति ने उन्हें विश्व के तीन सर्वकालिक निर्देशकों में से एक के रूप में सम्मानित किया. सा‍हित्यिक रचनाओं पर बनी फिल्मों पर आलोचकों की ज्यादा तीखी नजर रहती है. अक्सर रचनाओं का फिल्मी रूपांतरण आलोचना का सबब बनता है. लेकिन पाथेर पांचाली हो या प्रेमचंद की कहानी पर बनी शतंरज के खिलाड़ी, सत्यजीत रे की फिल्में इस चलन की अपवाद रहीं. शतरंज के खिलाड़ी के बारे में उनका कहना था कि अगर उनकी हिंदी भाषा पर पकड़ होती तो यह फिल्म दस गुना बेहतर होती.

भारत सरकार की ओर से फिल्म निर्माण के क्षेत्र में विभिन्न विधाओं के लिए उन्हें 32 राष्ट्रीय पुरस्कार मिले. सत्यजीत रे दूसरे फिल्मकार थे जिन्हें ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया. 1985 में उन्हें हिंदी फिल्म उद्योग के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया. 1992 में उन्हें भारत रत्न भी मिला और ऑस्कर (ऑनरेरी अवॉर्ड फॉर लाइफटाइम अचीवमेंट) भी. हालांकि काफी बीमार होने की वजह से वे इसे लेने खुद नहीं जा सके थे. इसके करीब एक महीने के भीतर ही 23 अप्रैल 1992 को दिल का दौरा पड़ने की वजह से उनका निधन हो गया.

कलकत्ता (अब कोलकाता) में दो मई 1921 को पैदा हुए सत्यजीत रे तीन साल के ही थे जब उनके पिता सुकमार रे का निधन हो गया. मां सुप्रभा रे ने इसके बाद बहुत मुश्किलों से उन्हें पाला. प्रेसीडेंसी कॉलेज से अर्थशास्त्र पढ़ने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए रे शांति निकेतन गए और अगले पांच साल वहीं रहे. इसके बाद 1943 वे फिर कलकत्ता आ गए और बतौर ग्राफिक डिजाइनर काम करने लगे. इस दौरान उन्होंने कई मशहूर किताबों के आवरण यानी कवर डिजाइन किए जिनमें जिम कॉर्बेट की ‘मैन ईटर्स ऑफ कुमाऊं’ और जवाहर लाल नेहरू की ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ शामिल है.

1928 में छपे विभूतिभूषण बंधोपाध्याय के मशहूर उपन्यास पाथेर पांचाली का बाल संस्करण तैयार करने में सत्यजीत रे ने अहम भूमिका निभाई थी. इसका नाम था अम अंतिर भेपू (आम के बीज की सीटी). रे इस किताब से बहुत प्रभावित भी हुए थे. उन्होंने इस किताब का कवर तो बनाया ही इसके लिए कई रेखाचित्र भी तैयार किए जो बाद में उनकी पहली फिल्म पाथेर पांचाली के खूबसूरत और मशहूर शॉट्स बने.

1949 में सत्यजीत रे की मुलाकात फ्रांसीसी निर्देशक जां रेनोआ से हुई जो उन दिनों अपनी फिल्म द रिवर की शूटिंग के लिए लोकेशन की तलाश में कलकत्ता आए थे. रे ने लोकेशन तलाशने में रेनोआ की मदद की. इसी दौरान रेनोआ को लगा कि रे में बढ़िया फिल्मकार बनने की भी प्रतिभा है. उन्होंने यह बात कही भी. यहीं से रे के मन में फिल्म निर्माण का विचार उमड़ना-घुमड़ना शुरू हुआ.

1950 में रे को अपनी कंपनी के काम से लंदन जाने का मौका मिला. यहां उन्होंने ताबड़तोड़ फिल्में देखीं. इनमें एक अंग्रेजी फिल्म ‘बाइसकिल थीव्स’ भी थी जिसकी कहानी से सत्यजीत रे काफी प्रभावित हुए. भारत वापस लौटते हुए सफर के दौरान ही उनके दिमाग में पाथेर पांचाली का खाका खिंच चुका था.

एक नौसिखिया टीम लेकर 1952 में सत्यजीत रे ने फिल्म की शूटिंग शुरू की. एक नए फिल्मकार पर कोई दांव लगाने को तैयार नहीं था तो पैसा उन्हें अपने पल्ले से ही लगाना पड़ा. लेकिन यह जल्द ही खत्म हो गया और शूटिंग रुक गई. रे ने कुछ लोगों से मदद लेने की कोशिश की. लेकिन वे फिल्म में अपने हिसाब से कुछ बदलाव चाहते थे जिसके लिए रे तैयार नहीं थे. आखिर में पश्चिम बंगाल सरकार ने उनकी मदद की और 1955 में पाथेर पांचाली परदे पर आई. इस फिल्म ने समीक्षकों और दर्शकों, दोनों का दिल खुश कर दिया. कोलकाता में कई हफ्ते हाउसफुल चली इस फिल्म को कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिले. इनमें फ्रांस के कांस फिल्म फेस्टिवल में मिला विशेष पुरस्कार बेस्ट ह्यूमन डॉक्यूमेंट भी शामिल है.

satyajeet re bhartiye cinema ka chitera

Written By
टीम द हिन्दी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *