ना ही है कोई टीला ना ही है कोई मजनू, फिर क्या है इस मजनू के टीले में
Majnu ka tila: आपने दिल्ली विश्वविधालय के आसपास के एक इलाके के बारे में काफी सुना होगा। यहां पर लोगों को वीकेंड आदि में जाने में काफी मजा भी आता है। इतिहास के रोचक पहलुओं के साथ आप यहां पर स्वादिष्ट व्यंजनों का आनंद भी उठा सकते हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं, दिलचस्प कहानियों के बीच बसे मजनू के टीले की।
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में एक ऐसा टीला जो ना सिर्फ अपने नाम के कारण बल्कि पर्यटन के लिहाज से भी लोगों के बीच काफी लोकप्रिय है। इस टीले का इतिहास भी बेहद रोचक है। मजनू का टीला दिल्ली ही नहीं बल्कि देश-दुनिया में भी प्रसिद्ध है। यह कॉलेज स्टूडेंट्स का भी फवरेट पिकनिक स्पॉट है।
कैसे नाम पड़ा मजनू का टीला
इस स्थान के नाम के पीछे एक रोचक कहानी है। कहते हैं इस जगह का नाम एक सूफी की वजह से मिला था। यह सिकंदर लोदी के समकालीन था। इसी समय में गुरु नानक इस फकीर से मिले थे। फकीर होने के कारण इसे लोग मजनू भी कहा करते थे। जिस कारण यमुना के पास एक टीले पर रहने के कारण इस जगह का नाम मजनू का टीला पर गया।
क्या-क्या है यहां पर फेमस
मजनू का टीला को दिल्ली का छोटा तिब्बत भी कहते हैं। यहाँ वीकेंड में आपको अच्छी खासी संख्या पर लोग घूमते हुए मिल जाएंगे। यहाँ की रंगीन और संकरी गलियां आपके मन पर बरबस ही इक याद को छोड़ जाएंगी और इन्हीं रास्तों पर कई सारे कैफे हैं, जिनें आपको स्वादिष्ट व्यंजन मिल जाएंगे। इसके अलावा कपड़े, घर सजाने का सामान और भी बहुत कुछ खरीदने का ऑप्शन मिलेगा।
क्यों कहते हैं मिनी तिब्बत
आप जब कभी भी मजनू का टीला आएंगे, आपको यह मिनी तिब्बत जैसा लगेगा। यह की संकरी गलियों से गुजर कर आप जिस चौराहा पर पहुंचेंगे उसे तिब्बती चौराहा भी कहते हैं। यहां पर आपको बड़े-बड़े घंटे लगे हुए दिख जाएंगे। जिसे देखने के लिए हर रोज बहुत सारे लोग यहां आते हैं। पूरा इलाका मानो ऐसा, जैसे यहां पर तिब्बती समुदाय ही रहता हो। इसलिए तो पर्यटक इसे मिनी तिब्बत भी कहते हैं।
पास में ही मजनू का टीला गुरूद्वारा
जी हां, मजनूँ के टीले को आप केवल मिनी तिब्बत या साजो सामान के लिए ना समझें। यहां पास में ही एक बहुत खूबसूरत गुरूद्वारा भी है, जिसे मजनूँ का टीला गुरूद्वारा कहते हैं। इस गुरूद्वारे की नींव सिख मिलिट्री लीडर बघेल सिंह जी ने की थी। कहते हैं मजनू का टीला गुरूद्वारे का नामकरण खुद गुरु नानक देव जी ने किया था। जिसके कारण सिक्खों के बीच इसको लेकर एक विशेष श्रद्धा भाव देखने को मिलता है।