अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर भारत में महिला सशक्तिकरण की चुनौतियाँ और प्रगति
आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है और हर साल हम इस दिवस को सेलिब्रेट करने के लिए एकत्रित भी होते हैं,हम लिंग समानता और हमारे देश में महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में की गई प्रगति का जश्न मनाते हैं। यह दिन आशा की एक किरण है जो हमें सच्ची समानता की दिशा में किए गए कार्य की याद दिलाता है।
भारत, अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के साथ, हमेशा से महिलाओं का सम्मान किया है, उनकी हमारे समाज के ताने-बाने में अपरिहार्य भूमिका को पहचानते हुए,इसके बावजूद, उनके सशक्तिकरण और समानता की यात्रा चुनौतियों से भरी हुई है। कानून बनाए गए हैं, नीतियां विकसित की गई हैं, फिर भी कई महिलाओं के लिए वास्तविकता इन आदर्शों से बहुत अलग है। इन विसंगतियों को न केवल स्वीकार करना ही जरूरी नहीं है बल्कि उस दिशा में निर्णायक कार्रवाई करना भी अनिवार्य है।
सशक्तिकरण पर हमारी चर्चा के बीच, हमें पश्चिम बंगाल के संदेशखाली में रिपोर्ट की गई गंभीर घटनाओं पर ध्यान देना चाहिए। ये रिपोर्ट महिलाओं के खिलाफ गंभीर दुर्व्यवहार को उजागर करती हैं, जिसमें एक गहरी चिंताजनक राजनीतिक साज़िश के तहत महिलाओं के खिलाफ अपराधों में संलिप्तता न केवल इन कृत्यों की गंभीरता को बढ़ाती है बल्कि हमारे लोकतांत्रिक समाज की नींव को भी कमजोर करती है।
महिलाओं के खिलाफ ऐसे संगठित अपराध हमारी सामूहिक अंतरात्मा पर एक चोट है, कलंक हैं ,और इसके लिए हम तत्काल और कठोर कार्रवाई की मांग करते हैं। न्याय सुनिश्चित करना न केवल एक निवारक के रूप में महत्वपूर्ण है बल्कि एक स्पष्ट संकेत के रूप में भी है कि ऐसी घटनाएँ हमारे समाज में क्या कोई स्थान नहीं रखती हैं?
महिलाओं की सुरक्षा और सशक्तिकरण के लिए बनाए गए कानूनों का कार्यान्वयन होना चाहिए। हम अधिकारियों से संदेशखाली घटनाओं के सम्बन्ध में इन कानूनों के कठोर कार्यान्वयन की मांग करते हैं। पारदर्शिता में वृद्धि और नियमित ऑडिट से जवाबदेही में सुधार हो सकता है।यह सुनिश्चित करते हुए कि महिलाओं के अधिकार केवल कागज पर ही नहीं बल्कि वास्तविकता में भी संरक्षित हैं।
शिक्षा सशक्तिकरण का आधार स्तंभ है। लड़कियों और महिलाओं के लिए शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण तक समान पहुंच सुनिश्चित करना आवश्यक है। इसके अलावा, महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देने की पहल को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।उन्हें आर्थिक क्षेत्र में पूरी तरह से भाग लेने के लिए कौशल और अवसर प्रदान करना बेहद ज़रूरी है ।
महिलाओं को व्यापक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच सुनिश्चित करना, विशेष रूप से प्रजनन स्वास्थ्य, अनिवार्य है। सरकार को महिलाओं के खिलाफ हिंसा से लड़ने के उपायों को मजबूत करना होगा, जिसमें अधिक महिला-केंद्रित पुलिस स्टेशनों और हेल्पलाइनों की स्थापना शामिल है। महिलाओं की राजनीति और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में भागीदारी को बढ़ावा देना सुनिश्चित करता है कि उनकी आवाज सुनी जाती है, और उनके हितों का ध्यान रखा जाता है ।
सरकार और निजी क्षेत्र के बीच सहयोग महिलाओं के सशक्तिकरण पहल के प्रभाव को बढ़ा सकता है ।
संदेशखाली में हुई घटनाएं हमें महिलाओं की सुरक्षा और सशक्तिकरण की दिशा में सामना करने वाली चुनौतियों की याद दिलाती हैं। हम एकजुट हों ,हमें एक सभ्य और स्वस्थ को समाज को बनाने की हमारी प्रतिबद्धता के उपर काम करना चाहिए,जहां महिलाएं न केवल सुरक्षित हैं बल्कि सभी क्षेत्रों में समान रूप से वो अपने जीवन के मार्ग को प्रशस्त कर सकें।आइए हम निर्णायक कार्रवाई करने का संकल्प लें, सुनिश्चित करते हुए कि न्याय, समानता, और महिलाओं के प्रति सम्मान के सिद्धांतों का सम्मान करें।
साथ में, हम एक ऐसा भविष्य बना सकते हैं जहां हर महिला और लड़की अपनी पूरी क्षमता को महसूस कर सकती है, भेदभाव और हिंसा से मुक्त। आइए इस अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर परिवर्तन के लिए एक मज़बूत कदम बढ़ाए, जहां महिलाएं सुरक्षित हों और सभी क्षेत्रों में समान रूप से अपने जीवन के मार्ग को प्रशस्त कर सकें।
लेखिका- कुमकुम झा
(यह लेखिका के निजी विचार हैं। द हिन्दी सभी सम्मानित लेखक\लेखिका को एक मंच प्रदान करता है।)