वडे बनने और बड़े बनने में हैं कई समताएँ
एक बार उड़द की काली दाल हलवाई के पास गई और बोली मुझे वड़े बना है। हलवाई ने कहा कि वड़े बना इतना आसान नहीं है बहुत तरह के विधियों(संघर्षों) से गुजरना पड़ेगा, पर उसने कहा कुछ भी हो हमें तो वड़ा बनना है ।तब हलवाई ने उड़द की काली दाल को रात को पानी में भिगोया ।सुबह दाल फूल गई तो उसने सोचा हम तो वड़े बन गए ।पर हलवाई ने कहा अभी तो तुम्हारी मसल मसल कर कालिख उतारी जाएगी। जब हलवाई ने मसल मसल कर उसको धोया तो वह काली से गोरी हो गई तो दाल खुश हो गए कि हम वड़े बन गए। पर हलवाई ने कहा कि अभी उसको सिलबट्टे पर पीसा जाएगा । जब हलवाई उसको सिलबट्टे पर पीसने लगा तो वह कभी इधर भागे कभी उधर,उसकी काफी दर्द हो रहा था पिस जो रही थी, पर उसने सोचा वड़े बनना है यह सब तो सहना पड़ेगा। जब हलवाई ने दाल को पीस दिया तो उसने पूछा क्या हम वड़े बन गए तो हलवाई ने कहा नहीं अभी तो जोर-जोर से फेंटा जाएगा। फेंटने के बाद जब दाल का पहले से वॉल्यूम बढ़ गया तो उसने पूछा कि अब तो हम सचमुच वड़े बन गए, पर हलवाई ने कहा नहीं अभी तो तुम्हें गरम-गरम तेल में तला जाएगा ।तुम्हें बहुत ताप सहना पड़ेगा। जब हलवाई ने तेल में दाल के बड़े डालने लगा तो छीं छीं की आवाज आने लगी जैसे दाल को दर्द हो रहा हो पर उसने वड़े बनने के लिए यह सब सहन किया कि अब तो हमें वड़े बन ही गए है। पर हलवाई ने फिर उसे ठंडे पानी में डालकर जोर-जोर से दबाया और कहा अब तुम पूरी तरह से वड़े बन गए हो।
अर्थात बड़े बना इतना आसान नहीं है, कहीं तो तुम्हारी कालिख उतारी जाएगी, कहीं तुम्हें पिसा(दबाया )जाएगा, कभी तुम्हें जोर-जोर से फेंटा जाएगा, मतलब तुम्हारे अंदर की क्षमता बढ़ाने के लिए तुम्हें अनेक प्रकार से परीक्षा ली जाएगी, कहीं ताप सहना पड़ेगा, कहीं दबाया जाएगा। अनेक प्रकार की परीक्षा से होकर जब व्यक्ति मजबूत होकर निकलता है तब वह बड़ा बनता है। उसका व्यक्तित्व पूरी तरह से बदल जाता है जैसे दाल दाल न रहकर वड़े बन गई। बड़े बना इतना आसान है परीक्षाएं तो देनी ही पड़ेगी।
जो भी महान बनता है उसे अनेक परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है।
जो शीर्ष पर पहुंचता है उसके पीछे उसके अनेक वर्षों के संघर्षों की कहानी होती है।
लेखक- रजनी गुप्ता
(यह लेखक के निजी विचार है। द हिन्दी सम्मानित लेखकों को एक मंच प्रदान करता है)